"मालिन का है दोष नहीं ,ये दोष है सौदागर का
जो भाव पूछता गजरे का और देता दाम महावर का"
ऐसा ही कुछ आजकल के धरना प्रदर्शनों का है जो किसी अन्य वजहों की वजह चर्चा में आ जाते हैं बजाय उसके जो वजह उन्होंने चुनी है। धरना, वैचारिक मतभेदों को लेकर है, चर्चा में बिरयानी है। बिरयानी तो पक्ष, विपक्ष दोनों तरफ के लोग खाते हैं। लेकिन बिरयानी को भी आजकल लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है। धरने से ज्यादा जिक्र तो बिरयानी का है। कुछ लोग इस तरह बिरयानी को लेकर क्रोधित हो रहे हैं कि मानो बिरयानी ने ही धरने की नींव डाली हो। धरने में बिरयानी है, बिरयानी के लिए धरना नहीं है। वैसे चाय, काफी, ड्राई फ्रूट, एनर्जी ड्रिंक सबकी हाज़िरी हो रही है धरने में, मगर जिक्र सिर्फ बिरयानी का है। कहते हैं कि बिरयानी मध्य एशिया के रास्ते होते हुए हिंदुस्तान में आयी और फिर यहीं की होकर रह गयी। "घर का जोगी जोगड़ा" की तर्ज पर बिरयानी भी अब मध्य एशिया के तमाम देशों में हाशिये पर ही पड़ी रही, मगर भारत में बिरयानी बहुत महत्वपूर्ण जगह पा रही है। बिगबॉस पर बिरयानी की टीआरपी भारी पड़ रही है। सवाल ये नहीं है कि बिरयानी कहां की है और किसकी है, सवाल ये है बिरयानी के धरना स्थल पर पहुंचते ही वो लाइमलाइट में आ जाती है। जगह -जगह की बिरयानी का फर्क है, मुम्बई में सलमान खान के घर हुई दावत को "बिरयानी खाने आना" कहकर पुकारा जाता है, भाईजान के साथ बिरयानी जिसने खा ली उसकी नैया पार समझो। शाहरुख़ खान अपना खाना किसी से भी शेयर नहीं करते, मगर ट्रेड पंडितों का अनुमान है कि बिरयानी ही उनके खाने का महत्वपूर्ण तत्त्व होगा। वैसे शाहरुख़ के शुभचिंतकों ने उन्हें सलाह दी है कि वे गोपनीय नहीं बल्कि सार्वजनिक तौर पर सलमान खान की तर्ज पर बिरयानी खाना और खिलाना शुरू कर दें ताकि उनकी फिल्मों की कमाई जीरो ना हो बल्कि उनकी मिलने वाले चेकों में अनगिनत जीरो जुड़ेंगे। बिरयानी वैसे तो विवाद में है मगर तमाम विवादों से अनचाहे में जुड़ भी जाती है। हाल ही में मैं लखनऊ गया था तो मेरे गाँव के एक चचा वहां पर हैदराबादी बिरयानी बेच रहे थे। मैंने उनसे पूछा कि-
"ये बिरयानी हैदराबाद की बिरयानी की तर्ज पर बनी है क्या? आपने हैदराबाद जाकर सीखा है क्या, या किसी हैदराबादी बावर्ची से लखनऊ में सीखे हो।"
वो हँसते हुए बोले - "तुम घर के हो इसलिये तुमको बता रहे हैं ,ये बिजनेस का सीक्रेट है, किसी से मत कहना।ये बिरयानी तो लखनवी ही है मगर हम इसे हैदराबादी बना कर बेचते हैं।तब खूब बिक्री होती है, ऐसी ही मेरा समधी हैदराबाद में बिरयानी बेचता है और लखनऊ की बिरयानी नाम का स्टाल खूब चलता है हैदराबाद में उसका। जैसे यहां लोग लखनवी बिरयानी को हैदराबादी समझ कर खाना समझना अपनी शान समझते हैं वैसे ही हैदराबाद में लोग लखनवी बिरयानी खाना शान की बात समझते हैं। और टॉप सीक्रेट ये है बेटा कि ना मैं मुझे हैदराबादी बिरयानी बनानी आती है और ना मेरे समधी को लख नवी बिरयानी बनानी आती है। ये सब बस स्टाल पर नाम बदलने का कमाल है। "मैं उनके मैनेजमेंट के गुणों पर हैरान रह गया। ऐसा नहीं है कि सिर्फ बिरयानी के साथ ही पंगे हुए हैं और भी खाद्य पदार्थ इस संकट से जूझ रहे हैं। हाल ही में देश के दो राज्यों में लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद ये तय हो सका है कि जलेबी किसकी है।इसके पहले कड़कनाथ मुर्गे को लेकर खासी उठापटक हुई थी अब कल को अगर कड़कनाथ मुर्गे की भी बिरयानी पर कोई सवाल उठा सकता है कि इस प्रदेश के मुर्गे से बनी बिरयानी का उस प्रदेश के धरना -प्रदर्शन में क्या काम? बिरयानी भी इस सबसे गमजदा होगी। डिप्लोमेसी में भी बिरयानी का जिक्र होता है, जो व्यक्ति शाकाहारी हो और बिरयानी ना खाता हो उससे भी लोग सवाल करते हैं कि "कि बिरयानी खाने क्यों गये थे।" भले ही व्यक्ति बिरयानी ना खाता हो बल्कि सिर्फ खिचड़ी खाता हो। एक चचा फरमा रहे थे कि भारत और चीन के संबंधों के सुधरने की सबसे बड़ी वजह ये है कि चीन के लोग बिरयानी नहीं खाते। वैसे चीन के लोगों के खाने पीने की आदतों ने दुनिया भर की अर्थव्यस्था को तगड़ी चोट दी है। चर्चा -ए-आम है कि चीन की महिला ने चमगादड़ का सूप पी लिया और उसी की वजह से कोरोना वायरस इंसानों में पहुंचा और अब साँप से बनी डिशेज के जरिये चीन के कई प्रान्तों में ये फ़ैल रहा है। इस वजह से विश्व व्यापार पर असर पड़ा, और पेट्रोलियम पदार्थ सस्ते हो गए जिससे भारत को खासा लाभ हुआ। अच्छा हुआ चीन के लोग बिरयानी नहीं खाते तो सस्ता तेल हमें मिल रहा है वरना बिरयानी खाने का दावा करने वाला मुल्क पाकिस्तान जो दाने- दाने को मोहताज है वो लगातार भारत की नाक में दम किये रहता है। उस मुल्क के हुक्मरान बिरयानी की दावतें उड़ा रहे हैं और अवाम भूख और बेबसी के हमलों से घायल है, सच ही है-
"एक दो जख्म नहीं,पूरा बदन है छलनी ,
दर्द बेचारा तड़पता है,उठे तो कहाँ से"
वैसे आजकल लोग इस बात की भी चर्चा करते हैं कि लोग बिरयानी ही क्यों, खिचड़ी क्यों नहीं। खिचड़ी का दम सर्व विदित है, खिचड़ी खाने वाले दो गुजराती देश के इतिहास पर बहुत महत्वपूर्ण छाप छोड़ रहे हैं तो फिर बिरयानी ही क्यों? एक खिचड़ी प्रेमी महात्मा गांधी ने अदम्य साहस का इतिहास रचा, कहते हैं कि स्वंत्रता संग्राम में लोग पुण्य पर्वों पर नदियों में स्नान करने के बाद भाईचारा बढ़ाने के लिये सामूहिक भोज का आयोजन करते थे और फिर उसी अनाज की शक्ति से अंग्रेजों से लोहा लेते थे। लेकिन देश के कुछ लोग शायद खिचड़ी से आगे बढ़ चुके हैं और बिरयानी तक पहुंच चुके हैं। मकर संक्रांति का त्यौहार देश के कुछ हिस्सों में खिचड़ी के नाम से मनाया जाता है। हाल ही में एक प्रोग्रेसिव सज्जन ने कहा है कि हम भी बिरयानी डे मनाने को सोच रहे हैं। इस देश में अगर खिचड़ी भोज हो सकता है तो बिरयानी भोज क्यों नहीं। उनकी प्रगतिशील सोच को मैंने दंडवत प्रणाम किया। मैं उनसे कुछ और कहता तब तक मेरे बाल सखा और पड़ोसी पप्पू का फोन आ गया। मैं उनसे कुछ पूछता ,इससे पहले वो हाँफते हुए बोले "अपना व्हाट्सप्प देखो,कुछ दवाई लिखी है उसे तुरंत ले आओ और हाँ आते वक्त एक पाव मूंग की दाल लेते आना। बहुत अर्जेंट है, तुरंत आओ।"
मैंने उनसे पूछा "भैया हुआ क्या,किस मर्ज की दवा है और मूंग का क्या करोगे?"
उन्होंने धीमे स्वर में कहा "अरे यार,कल बिरयानी खा ली रात को,शायद ज्यादा हो गयी या बासी रही होगी। सो फ़ूड पोइजिनिंग हो गयी। सुबह से दसियों दस्त आ चुके हैं। अब तुम दवा ले आओ और मूंग भी। तो खिचड़ी खाकर दवा खा लूंगा। जो कुछ बिरयानी ने बिगाड़ा है वो खिचड़ी सम्भाल लेगी" ये कहकर उन्होंने फोन काट दिया।
मैं उनकी बिगड़ी हालत के बारे में सोच रहा था कि वाकई जो बिरयानी से बिगड़ा है, वो खिचड़ी सम्भाल लेगी। उनकी दवा की प्रेस्किप्शन पढ़ने के लिए मैंने मोबाइल में व्हाट्सएप्प आन किया तो मेरे बेटे का मैसेज चमक रहा था कि "पापा आते वक्त एक प्लेट बिरयानी ले आना।"