जब रात वीरानी हो जाए, जज़्बात नूरानी सो जाए,
जब जीवन रस का हर कतरा, एक बात पुरानी हो जाए,
जब उनके किस्सों के पीछे, हर एक कहानी खो जाए,
जब एक दरस की चाहत में, दिन रात जवानी रो जाए,
तब राख समान अंधेरों पे तुम एक उजाला पड़ने दो,
बस पाँच मिनट रुक जाओ तुम, एक चाय का प्याला भरने दो।
जब विश्वविजयी बन जाओ तुम, या छोटी मुश्किल पार करो,
जब ग्रन्थ प्रकाण्ड लिख डालो तुम, या भगवद जैसा सार करो,
जब इश्क़ में दिल से तर जाओ, या ख़ुद ही ख़ुद से प्यार करो,
जब उनकी एक हँसी खातिर, सारे सपने साकार करो,
तब खिलखिलाती इस जीवन में थोड़ी बहार और करने दो,
बस पाँच मिनट रुक जाओ तुम, एक चाय का प्याला भरने दो।
जब चलने से थक जाओ तुम, और अँधेरा सा छा जाए,
जब बढ़ने के साहस से ज़्यादा, गिरने का डर आ जाए,
जब इच्छाओं की लाशों पर, एक चील आके मँडरा जाए,
जब साथ किसी का छूटे, और वो दुःख ही तुमको खा जाए,
तब ऊपर देखो, थामो हाथ और नए रिश्तों को जुड़ने दो,
बस पाँच मिनट रुक जाओ तुम, एक चाय का प्याला भरने दो।
जब कल की चिंता के आगे, अब का जीवन बेकार लगे,
जब चलते चलते रास्ते में, खुद से खुद पे धिक्कार लगे,
जब साथ रहने के ख्वाबों से, मुश्किल तुमको इज़हार लगे,
जब ख़ुद को छलनी करने से, फ़ीकी तलवार की धार लगे,
तब ख़ुद पे थोड़ी दया करो तुम थोड़ी चिंता को मरने दो,
बस पाँच मिनट रुक जाओ तुम, एक चाय का प्याला भरने दो।
इस जीवन के छोटे रस्ते पे, क्यों इतनी चिंता करते हो?
क्यों बोझ भतेरे लेकर तुम, मरने से पहले मरते हो?
क्यों खुद से इतनी नाराज़ी, क्यों खुद से इतना लड़ते हो?
तो प्यार करो डरना छोड़ो और खुद से खुद को मिलने दो,
थोड़ा सा पानी गरम करो तुम, थोड़े पत्तों को घुलने दो,
रुक जाओ, बैठो, सबर करो, अच्छी चीज़ों को पकने दो,
फिर छोटे थैलों में भरके, उन खुशियों की पुड़िया को तुम,
होंठों से दिल तक जाने दो, थोड़ा ज़ख्मों को भरने दो,
इस मीठी मदिरा को भरके, थोड़ा सा जादू चढ़ने दो,
बस पाँच मिनट रुक जाओ तुम, एक चाय का प्याला भरने दो।
~ बिधान आर्य