इस धन्य भारतवर्ष के, भू पर अनेकों रण हुए,
तज स्वार्थ बलिदानी चले, और शीश शत अर्पण हुए
पोथी किताबो में है अंकित, नाम स्वर्णिम शब्द में,
अमरत्व के सानी वे थे, जो मृत्यु पाए हर्ष में
ना रंज कोई भाल पर, है हर्ष हर संघर्ष में,
सर्वस्व अर्पण मातृ पर, हो हौसले जब अर्श में।
पहली पहेली त्याग की, गांगेय के परमार्थ की,
तज राजसिंहासन चले, उस देवव्रत प्रताप की
काल का जब काल आए, कुरुक्षेत्र के मैदान में
शर बाण उसका क्या करे?, हो मृत्यु जिसके हाथ में
ना रंज कोई भाल पर, है हर्ष हर संघर्ष में,
सर्वस्व अर्पण मातृ पर, हो हौसले जब अर्श में।
दूजी सुनो सूत पूत की, वसुषेण या बलिदूत की
तज कवच कुंडल विप्र को, उस दानी अंग नरेश की
वसुधा तले पहिया धंसा, द्विजराज के अभिशाप में
न विद्या कोई याद आये, मृत्यु अर्जुन बाण में
ना रंज कोई भाल पर, है हर्ष हर संघर्ष में,
सर्वस्व अर्पण मातृ पर, हो हौसले जब अर्श में।
तीजी कथा कृपाण की, दशमेश सुत बलिदान की
तज बाल्यावस्था में चले, जोरा फ़तह के प्राण की,
दहली दीवारें म्लेच्छ कांपे, जोरा के अश्रु आँख में,
है अनुज जीवन अंत पर, क्यूँ मृत्यु मेरी बाद में?
ना रंज कोई भाल पर, है हर्ष हर संघर्ष में,
सर्वस्व अर्पण मातृ पर, हो हौसले जब अर्श में।
चौथी सुनो चित्तोड़ की, है धन्य जिसकी नारियाँ
तज विजय कीर्ति, दुर्ग में, श्रृंगार करती अस्थियाँ
अग्नि की लपटे क्या करे, वीरांगना के मान में
रण विजित खिलजी क्या करे? तृष्णा की मृत्यु हार में
ना रंज कोई भाल पर, है हर्ष हर संघर्ष में,
सर्वस्व अर्पण मातृ पर, हो हौसले जब अर्श में।
स्वाधीनता के नाम की, भू-हित प्रथम संग्राम की,
तज द्वैष सब इक हो चले, भू-हिन्द के सम्मान की,
थे बख्त पाण्डे और जफ़र शाह, क्रांति के मैदान में,
झाँसी की कण कण क्रन्दना, अमरत्व मृत्यू राग में
ना रंज कोई भाल पर, है हर्ष हर संघर्ष में,
सर्वस्व अर्पण मातृ पर, हो हौसले जब अर्श में।
जननी रुदित संताप को, लाला के रक्त प्रवाह को,
तज घर गृहस्थी जो चले, "आजाद” के संग्राम को
चौषठ दिनों की वह क्षुधा, यतीनाथ के बलिदान में
वे तीन राही चढ़ गए, मृत्यु के शूली हार में
ना रंज कोई भाल पर, है हर्ष हर संघर्ष में,
सर्वस्व अर्पण मातृ पर, हो हौसले जब अर्श में।
स्मित सकल सागर काल मृत्यु, क्रन्दना रतिकाल मृत्यु
तज विजय-तृष्णा काल मृत्यु, स्वप्न काला-काल मृत्यु
मृत्यु भय में जो जिए, मृत्यु को देखे दर्श में
अमरत्व के सानी है वो, जो मृत्यु पाए हर्ष में
ना रंज कोई भाल पर, है हर्ष हर संघर्ष में,
सर्वस्व अर्पण मातृ पर, हो हौसले जब अर्श में।