कल मैं अक्षर सीख रहा था आज अकसर चेहरे पढ़ने लगा हूँ कल मैं खुल के रोता, माँ को बुलाता आज बहाने ढूँढने लगा हूँ कल मैं सिर्फ सवाल पूछता था आज लाजवाब होने एकटक दौड़ता हूँ कल मैं उंगली पकड़ने की कोशिश मे था आज हाथ छोड़ आगे जाने लगा हूँ कल मैं कट्टी जल्दी भूल जाया करता था आज नाराजगी को दरार बनाने लगा हूँ कल मैं सहज ही प्रेम से प्रेम करता था आज नफरत न करने के तर्क दे रहा हूँ कल मैं कितनी शीघ्र बढ़ा हो रहा था आज बस नज़रों मे छोटा हो गया हूँ कल मैं अटल ज़िद करना जानता था आज पर मगर लगाना सीख गया हूँ कल मैं शब्दों को हु बहु मानता था आज पहलू , गहराई में जाने लगा हूँ कल मैं हल्ला शोर करने मे खुश था आज सिर्फ शांति के लिए चीखता हूँ कल मैं अबोध बैरागी जैसा आज ज्ञानी होकर मन उलझा रहा हूँ कल मैं दिल की मनचाही बोलता आज पहले लय ताल बैठाने लगा हूँ कल मैं कितना अच्छा कितना बुरा था आज अनजानी कसौटियों पर ये नाप रहा हूँ कल मैं ऊबने, भूलने का हुनर रखता था आज विचार व्यूह मे गहरे गोते खा रहा हूँ कल मैं फैसलों, दोराहे से कोसों दूर था आज अफसोस, शिकवों मे चैन गवा रहा हूँ कल मैं इस आज का इंतज़ार करता था आज महज यादों मे गुमसुम बिता रहा हूँ।