पत्थर नहीं बचे या मिरा सर बदल गया
या फिर उसूल ए शह्रे सितमगर बदल गया
थोड़ी सी भीक ले के गदागर बदल गया
थोड़ी सी दाद पा के सुख़नवर बदल गया
जाने लगे फ़कीर लिए चाक ए पैरहन
शायद मिज़ाज ए चश्म ए रफ़ूगर बदल गया
अव्वल तो मुद्दतों कहीं ठहरी नहीं निगाह
ठहरी कहीं निगाह तो मंज़र बदल गया
अब तो न दीजिए मुझे तौबा के मशवरे
ज़ाहिद भी मेरे हाथ से पीकर बदल गया
~ विनायक सोनी 'जहर'