चाहे धूमिल तू कर मुझको, लिख ऐसा इतिहास
विकृत और विषपूर्ण छलावे, जिसमे करें वास।
दबा बोझ से कंधे मेरे, फेंक जुल्मी जाल
कुचल जाने पर भी उड़ेगी, ये धूल सी चाल।
देखो तुम बेबाक मुझे यूँ, औरों के समान
पीड़ित है क्यों दिल ये तेरा, अटकी रे क्यूँ जान?
व्यथित न हो देख मेरा हर्ष, देख मेरी शान
इतराऊं जैसे घर मेरा, है रतन की खान।
बेशर्ते लिख कर रख लो तुम, रखना इसको याद
अंतरिक्ष भी नहीं नामुमकिन, मेरे आने बाद।
जैसे ज्वार आगमन निश्चित, निश्चित सूरज चाँद
निश्चित आशा भरे पाँव लिए, मारूँ आज छलांग।
झुके नैन और नीचा मस्तक, साहस टूटा हार
अलग चैन है मिलता तुमको, देख व्यथित नार।
करुणित क्रंदन से दुर्बल हो, मुक्त मेरे प्राण
चाहा तुमने कंधे मेरे, टूटे अश्रु समान।
मेरा गुरूर करता तुम्हें, इस कदर नाराज
क्या नहीं लगता तुमको ये, इक महा आगाज?
क्योंकि मेरी मंद हंसी में, बसे ऐसे फूल
मानों कि रख के अंगने में, गयी सोना भूल।
कर सकते हो वध मेरा तुम, कर शब्दों का वार
कर सकते पुरुष अंत मेरा, चक्षु ज्यों तलवार।
चाहो तो मुझको दफना दो, या दो यूंहि शूल
किन्तु मैं उपर ही उठूँ और, नभ मे जाउ झूल।
जब मैं नाचूं करके यूं, हीर नैन को मीच,
यूं जगमग मेरा जीवन हों, मोतियों के बीच।
अचरज ये कामुकता मेरी, हर किसी की प्रीत
क्यों हो जाते विस्मित इतने, बतलाओ रे मीत!
उडूंगी उन घरों से जिसमे, है बुरा इतिहास
जिस अतीत की गहराई में, वेदना का वास।
किंतु काल जलधि के जैसी, वृहत और स्वतंत्र
सबल ज्वार सम इठलाऊँ मैं, शून्य से अनंत।
काली घनी रात सहमी सी, उसे पीछे छोड़
भेदभाव की जटिल बेड़ियां, आज उनको तोड़।
नफ़रत जैसी हीन भावना, करूँ इसका चूर्ण
उडूॅं मैं इसी नील-गगन में, करती स्वप्न पूर्ण।
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