उठो अभी, दहाड़ लो, ये रक्त खौलता रहे सत्य को तलाशो, स्वप्न झूठ बोलता रहे मृत तुम्हारा पुत्र है, औ' शीत मेरी प्रेमिका, असि विहीन वर्तमान, नृपति होता देवता पर देवता हैं क्षुबद्ध, आज दानवों का राज है, एक-एक कक्ष तुमको भग्न करना आज है, भव्य-भोगी-भवनों में नहीं तुम्हारा भाई है सभ्य रहते सभ्यता कभी न आन पाई है संस्कृति और सभ्यता को ऐसे कौन खोता है राष्ट्र जल गया, नृप गणिकागृहों में सोता है अब व्यक्तियों का वासना से मोहभंग हो चुका और शासकों की नग्नता में देश नग्न हो चुका पाथ से प्रासाद कोई यदि अभी न जाएगा तो द्वार भींच द्वारपाल राष्ट्र बेच खाएगा हाँफती औ फूलती नब्ज का भी हाल लो वर्तमान खो चुके, भविष्य को संभाल लो भूपति की भूमि में उथल-पुथल मचाना है आमूलचूल वैविध्य में नवीन राष्ट्र लाना है "कर भला तो हो भला" का अस्त्र है ही कब चला अस्ताचल जो सूर्य हो, है हर दिया तभी जला खड़ग-खड़ग घुमाओ, रिपुरक्त पे न ध्यान दो फन उठा भुजंग सा तुम राष्ट्रहित में जान लो देश भूखों मर रहा, ये मधु रसाद खाएंगे है सुख गणित क्षणों का, इनके केश खींचे जाएंगे अन्न की, शरीर की, जल की मांग लाओ तुम, भाल नोक जाओ तुम, औ' शीश टांग लाओ तुम कर में दंड थाम है घमंड तुमको चूरना जो शत्रु तुमको घूरेगा, तुम आत्मा को घूरना धमक-धमक हृदय जो हो, हृदय वही सजीव है सहस्त्र सिंह-गर्जना हो, शत्रु क्या ही जीव है? लहूप्रवाह अब न हो? ये बेतुका विवाद है शब्द थक गए हैं, आज युद्ध शंखनाद है जो नृप नृशंस हो चला, क्यों नर भला यूँ शांत हो क्रांति हो, क्रांति हो, क्रांति हो, क्रांति हो
~ मुदित चंद
---------------------------------------------------
मुदित की आवाज़ में कविता को सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें।