आज सुबह एक पंछी
मेरे घर से उड़ा।
मैं देख रहा हूँ उसे जाते हुए।
निःस्तब्ध, निष्प्रभ।
ये पंछी कौन है?
मैं नहीं जानता।
ये मेरे साथ ही रहता था।
जब की भी पहली याद है,
तभी से मेरे साथ है।
माँ बताती थी कि,
उसके भी पहले से मेरे साथ है।
ये पंछी कभी मुझसे अलग नहीं हुआ।
मैं जो खाता था, ये भी खाता था।
मैं सोता, ये सोता।
मैं जागता, ये भी जागता।
हम दोनों अलग न थे।
लेकिन मैं परेशान रहने लगा
इससे।
जब भी कभी मैं हताश होता,
तब मैंने कैई बार
इसे भगाना भी चाहा।
मैंने कई बार इसे बेचने की
कोशिश भी की।
लेकिन ये कहीं नहीं गया।
माँ ये भी बताती थी
कि ये आसानी से नहीं जाएगा।
गर जाएगा तो लौट के फिर न आएगा।
मैंने फिर इससे समझौता कर लिया
इसने मेरे मन में घर कर लिया।
अब हम अकेले ही रहते थे।
मैं और ये पंछी।
हम दोनों अलग न थे।
आज ये उड़ गया।
आज बहुत मन किया
कि रोक लूँ इसे।
किन्तु नहीं रोक सका,
क्योंकि मैं पड़ा पड़ा देख रहा हूँ,
निष्प्रभ, दीन,
शक्ति विहीन।
आज मालूम पड़ा कि ये कौन है।
ये मैं ही हूँ।
हम दोनों अलग न थे....
~ यश श्रीवास्तव