जिस तरह तारों की रौशनी को हम तक पहुंचने में वक़्त लगता है यानी हम अभी जैसे तारों को देख रहे हैं वो ऐसे सदियों सालों पहले थे अब शायद वो वैसे नहीं हैं शायद टूट चुके हों या पता नहीं वैसे ही तुम्हारी याद है जो कि तुम जैसी सदियों पहली थी उस पर आधारित है तुम्हारा चेहरा तुम्हारा बदन तुम्हारी आवाज़ तुम्हारी आदतें तुम्हारी बातें सब कुछ पिछले जनम की लगती हैं पर दिल को टिमटिमाते तारों की तरह छलावा होता है की ये सब अभी हो रहा है दिल भी बिल्कुल उन आशावादी लोगों की तरह है जो टूटते हुए तारों को देख के दुआ मांगते हैं जबकि वो कब के टूट चुके होते हैं दिल में तमन्नाएं रौशनी की रफ्तार से दौड़ती हैं पर इनका सफर भी रौशनी के सफर से कम नहीं।