नए दिवस की नई प्रभा पर सपना यह निश्चल देखा है,
कल से बेहतर आज से सुंदर मैंने अपना कल देखा है..
सूरज की स्वर्णिम किरणों को वसुधा पर बिखरे देखा है,
एक साथ अंगिनत पुष्प की कलियों को खिलते देखा है..
बूढ़ी और थकी नदियों को सागर से मिलते देखा है,
मीठे और श्वेत झरनों को भूधर से गिरते देखा है..
मीलों तक फैले मरुस्थल में लघु सरिता बहते देखा है,
बरसों के प्यासे
चातक
को बारिश में तरते देखा है,
कल से बेहतर आज से सुंदर मैंने अपना कल देखा है..
मंदिर, मस्जिद व गिरजा-घर एक घाट खड़े देखा है,
देश प्रांत और जात -धर्म की सरहद को मिटते देखा है..
नफ़रत से बेज़ार दिलों में लौटा अपना पन देखा है,
युद्धों से बरबाद शहर में सबके बीच अमन देखा है..
भवन और सड़कों की भू पर फैला सुंदर वन देखा है,
विधवा होती हुई धरा को फिर बनते दुल्हन देखा है..
कल से बेहतर आज से सुंदर मैंने अपना कल देखा है..
बंजर से सूखे खेतों में, पय का एक हिलोर देखा है,
अब तक सूखे रहे वनों में, नद-निर्झर, मृग-मोर देखा है..
तपते और थकते कृषकों को तरू की छाँव तले देखा है,
उनके श्रम के स्वेद-कणों को रबी-धान बनते देखा है..
शरद ऋतु की अर्ध रात्रि को उष्मा को पाते देखा है,
विहगों के सूखे आलय पर माधव को आते देखा है..
कल से बेहतर आज से सुंदर मैंने अपना कल देखा है..
पथ से भ्रमित हुए बटोही को मंजिल पाते देखा है,
श्रम से बोझिल मजदूरों को मधुर राग गाते देखा है..
बीच भंवर में फँसी तरी को साहिल पर आते देखा है
कुटिल जनों को निर्जर बन कर देवलोक पाते देखा है..
रिश्तों के बिखरे मोती को फिर माला बनते देखा है,
कटुता के घनघोर तिमिर में प्रेम-दीप जलते देखा है..
अंधकार की इस वेला में मैंने छुपा भोर देखा है,
रैनो के इस सन्नाटे पर प्रतिपल नया शोर देखा है..
कल से बेहतर, आज से सुंदर, मैंने अपना कल देखा है..
नव शिशुओं के कोमल कर में मिली सफलता की रेखा है..
सालो पहले पेड़ जो बोया उसका मैंने फल देखा है,
जाने क्या ब्रह्मा ने सोचा जाने क्या विधि का लेखा है,
फिर भी सभी युगों से स्वर्णिम अपना कल का युग देखा है..
नए दिवस की नई प्रभा पर सपना यह निश्चल देखा है,
कल से बेहतर आज से सुंदर मैंने अपना कल देखा है.. !!