“ये ग्रीष्म की धूप के हल्के गहरे रंग, हेमंत की पत्रधूली और इस घर की सीलन…., ये पृष्ठ अब कोरे कहाँ हैं मल्लिका? इनपर एक महाकाव्य की रचना हो चुकी है, अनंत सर्गो के एक महाकाव्य की।”
ये शब्द हैं युगांतकारी नाटककार मोहन राकेश के आधुनिक युग का प्रथम नाटक कहे जाने वाले ‘आषाढ़ का एक दिन’ के।
कुछ लेखकों ने नाटक में सहज स्वाभाविकता और नाटकीयता के जिस मिश्रण का सूत्रपात किया था उसकी महत्वपूर्ण परिणीति ‘आषाढ़ का एक दिन’ में हुई है। काल के आयाम को बड़ी रोचक तीव्रता के साथ नाटक में प्रस्तुत किया गया है। इस नाटक में महाकवि कालिदास के माध्यम से दिखाया गया है कैसे एक आसाधारण मनुष्य भी परिस्थिति के आगे विवश हो सकता है।
नाटक को तीन अंको में बाँटा गया है। हर अंक स्वाभाविक रूप से एक दुसरे से कुछ अन्तराल के साथ जुड़े हुए हैं। प्रथम अंक में मुख्य रूप से महाकवि कालिदास और मल्लिका के बारे में बताया गया है, मल्लिका की माँ का उनके रिश्ते से खुश ना होना, कालिदास द्वारा साधारण परिवेश में रह कर एक असाधारण काव्य की रचना करना आदि अन्य दृश्य पाठक को नाटक की भूमिका से भली-भांति परिचित करा देते हैं। द्वितीय अंक में महाकवि कालिदास के जीवन में बदलाव और उसके परिणामस्वरूप मल्लिका के जीवन में होने वाले बदलाव को दर्शाया गया है। तीसरे और आखरी अंक में मल्लिका तथा कालिदास के मध्य मर्मस्पर्शी संवाद है।
कालिदास की मौजूदगी के बावजूद मल्लिका के किरदार को मुख्य किरदार के रूप में दिखाना अपने आप में नाटक के अनोखेपन को दिखाता है। मल्लिका के रूप में लेखक ने निस्वार्थ प्रेम की पराकाष्ठा दिखाई है। जीवन की अनेक मुश्किलों एवं समाज के तीखे प्रश्नों के बीच भी सच्चा प्रेम कैसे एक इन्सान में उम्मीद की लौ के रूप में काम करता है, ये बखूबी इस नाटक में दिखाया गया है। साथ ही समय के आगे प्रेम की विवशता को भी दर्शाया गया है। नाटक में मल्लिका के आत्मसम्मान की झलक दिखाई देती है। कालिदास के उज्जैन जाने के पश्चात नाटक अनेक करवट लेता है और अलग-अलग दृश्यों के माध्यम से पाठक मल्लिका के चरित्र के अनेक पहलुओं से रूबरू होते हैं।
नाटक का पूरा आकर्षण मुख्य किरदारों तक ही सीमित नही रखा गया है। हर किरदार को नाटक में अलग-अलग स्थान पर महत्वपूर्ण भूमिका में दर्शाया गया है। ऐसा ही एक रोचक एवं जटिल किरदार है ‘विलोम’। विलोम को खलनायक कहकर टाला नहीं जा सकता। उसके बिना यह नाटक भावुकतापूर्ण और शिथिल रह जाता। अगर विलोम के किरदार को नजदीक से देखा जाए तो आप पाएंगे कि मोहन राकेश जी ने इस किरदार की रचना बहुत ही परिपक़्वता के साथ की है। विलोम तथा कालिदास के बीच हुए संवाद का हर तर्क-वितर्क बहुत ही सोचसमझ कर लिखा गया है जिस कारण वह पाठक से सीधा संपर्क स्थापित करने में सफल हुआ है।
नाटक में पात्रों की विविधता के दो अन्य रोचक रूप हैं- मल्लिका की माँ, अम्बिका और कालिदास के मामा, मातुल। दोनों बुजुर्ग हैं, नाटक के दो प्रमुख तरुण पात्रों के अभिभावक। दोनों ही अपनी-अपनी संतानों से असन्तुष्ट एवं निराश हैं। फिर भी दोनों एक-दूसरे से एकदम भिन्न हैं। दोनों के बीच यह भिन्नता संस्कार, जीवनदृष्टि, स्वभाव, व्यवहार, बोलचाल, भाषा आदि अनेक स्तरों पर उकेरी गयी है। इससे मल्लिका और कालिदास दोनों के चरित्र को और अधिक सूक्ष्मता के साथ पाठक से समक्ष चित्रित किया गया है। ऐसी ही दिलचस्प विसदृशता निक्षेप और कालिदास तथा मल्लिका और प्रियंगुमंजरी के बीच भी रची गयी है।
मोहन राकेश ने ‘आषाढ़ का एक दिन’ के रूप में कालिदास के जीवन के उस पहलु को चित्रित करने का प्रयास किया है जिससे हम सभी अनजान थे, साहित्य से अलग एक खूबसूरत दुनिया। नाटक का हर संवाद तर्कसंगत तथा दृश्य के साथ प्रासंगिक है। यह नाटक केवल हिन्दी में नहीं अपितु अनेक भाषाओँ में अनुवाद करके प्रस्तुत किया गया है। यह मोहन राकेश जी के नाट्यशैली की महिमा है।
सफलता और प्यार के बीच जूझते हुए कालिदास का जीवन और निस्वार्थ प्रेमिका मल्लिका इस नाटक को अत्यंत मौलिक तथा भावपूर्ण रूप प्रदान करते हैं, जो इतने दशकों के पश्चात भी रंगमच पे उपस्थित दर्शक तथा वाचकों को भावुक कर देता है। यह नाटक जीवन के सूक्ष्म पहलुओं को दर्शाता है तथा वास्तविक आधुनिक जीवन की छवि है इसीलिए यह नाटक आधुनिक नाट्यशैली की शुरुआत का प्रतीक है। ये आपको वास्तविक जीवन तथा शाश्वत प्रेम का दर्शन कराता है।