न कहो मुझे उदास स्वरों में, जीवन है निरर्थ सपना।
न रहो तुम हताश भावों में, न करो व्यर्थ जन्म अपना।।
है मृत वो दुर्भाग्य आत्मा, जिसमें आलस्य वास हो।
है जिंदगी वो सफल जिसमें, उद्यम सदैव सुवास हो।।
जीवन है सच्चाई गहरी, है जीवन सागर गहरा।
चिता नहीं है इसकी मंजिल, यह एक अवसर सुनहरा।।
ये देह बनी है मिट्टी से, मिल जाना है इसी धरा में।
पर आत्मा है अंग ईश का, संचित सभी एक स्वरा में।।
सुख दुख जीवन लक्ष्य नहीं है, फल से न कोई वास्ता।
न ही ये तेरी नियति होगी, ना ही ये तेरा रास्ता।।
कर्म स्वयं तेरा दाता है, है कर्म तेरा विधाता।
तू खोज स्वयं को सब दिश में, आज है कल का विज्ञाता।।
दुनिया में जीवन है शाश्वत, पर है समय अधिक अधीर।
बल और सूर होने पर भी, है जीव हृदय बहुत धीर।।
व्यर्थ जा रहा समय हमारा, हर पल कहता जाने की।
चिता से पहले जतन करना, बड़ी सफलता पाने की।।
जिंदगी के इस मैदान में, योद्धा बनना पड़ेगा।
क्योंकि हर इक बाधा है युद्ध, उससे लड़ना ही होगा।।
छोड़ भेड़ों की चाल चलना, जंग अकेले की होगी।
बनो नायक अपनी जंग का, विजय तुम्हारी ही होगी।।
मत करना तुम कभी भरोसा, सुंदर कल की माया पर।
मत हो जाना अति अधीर तुम, बीते कल की छाया पर।।
करो तुम आज अतुल परिश्रम, फल कुछ उत्तम पाओगे।
नारायण भी साथी होगा, दिल में उमंग लाओगे।।
श्रेष्ठ लोग हमें यह सिखाएं, द्वारा जीवन के अपने।
हम सब भी साकार करें निज, आदर्श जीवन के सपने।।
जाते-जाते बयां करें वो, उनका ये अंतिम सन्देश।
समय पटल पर तब जीवन ले, नूतन पद-चिन्हों का वेश।।
दिग के भूतल के सकल सघन, जीवन कष्टों से हारी।
किसी बंधु की थकी शिणाएँ, दे धैर्य परीक्षा भारी।।
तब दिखे पुरातन चरण छाप, बने आशा का सन्देश।
बने उठे ले विश्वास क्रांति तब, उन्हीं पद-चिन्हों का वेश।।
तो चलो वीर आलस त्यागो, तुम उठो और कार्य करो।
हो विजय प्राप्त या मिले मात, सहृदय वो स्वीकार्य करो।।
रहो अडिग सदा ध्येय पथ पर, हर विजयश्री पाते चलो।
करो कठिन परिश्रम सुबह शाम, धैर्य सदा बांधते चलो।।