"प्राणी का कोई मूल्य नहीं, केवल दहेज का मूल्य है।"
मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित
यह उपन्यास 'निर्मला', बनारस की एक पंद्रह-वर्षीय मध्यमवर्गीय परिवार की एक लड़की के
इर्द-गिर्द लिखा गया है। इस उपन्यास के माध्यम से मुंशी प्रेमचन्द ने नारी के प्रति
समाज की सोच, दहेज-प्रथा, नारी की पुरुष पर पूर्ण निर्भरता, अनमेल विवाह जैसे कई पहलुओं
को उजागर किया है। इस पुस्तक में मुंशी प्रेमचंद ने भावों की बहुत सुंदर प्रस्तुति दी
है एवं बड़ी सरल भाषा-शैली का उपयोग किया है।
पंद्रह वर्ष की जिस लड़की को पिता के जीवित रहते, एक अच्छे एवं समृद्ध परिवार में ब्याहने की तैयारियां चल रही हैं, वहीँ उसी को पिता की मृत्यु के बाद दहेज, समाज की कुरीतियों एवं विषम परिस्थितियों के चलते अपना संपूर्ण जीवन एक ऐसे अधेड़ व्यक्ति के साथ जीने के लिए मजबूर कर देता है जो उसके पिता की हमउम्र का है। और यहीं से निर्मला की खुशहाल जिंदगी में एक करुण त्रासदी का जन्म होता है।
मुंशी प्रेमचंद ने गृहस्थ जीवन की वास्तविकता को दिखाया है जहाँ एक तरफ निर्मला सब कुछ भला कर अपने 40-वर्षीय पति एवं उसकी संतान की देखरेख में ही अपने को पूर्ण रूप से समर्पित रखने का भाव रखती है किन्तु वह अपने दाम्पत्य जीवन के साथ समन्वय नहीं बैठा पाती है। उम्र के अंतर ने निर्मला के सारे भावों और चंचलता को ख़त्म कर दिया था। वह तीन सौतेले बेटों कि माँ बन चुकी है। निर्मला का चरित्र बहुत ही निर्मल एवं उच्च दिखाया गया है। उसे अपमान एवं अवहेलना का भी सामना करना पड़ा, परिस्थितयों ने उसे एक अपराधी-सा घोषित कर दिया लेकिन वह अपने कर्तव्यों को विपरीत परिस्थितियों में भी निभाती रहती है।
निर्मला एक चरित्र-प्रधान उपन्यास है। प्रेमचंद ने इस कहानी को वास्तविकता के समीप लाने का प्रयास किया है। उन्होंने पात्रों का चित्रण इतनी जीवंतता एवं यथार्थता के साथ किया है कि ये पात्र हमें अपनी जिंदगी से जुड़े मालूम होते है। प्रेमचंद ने इस उपन्यास की रचना इस प्रकार से की है कि पाठक उसे अपने आस-पास के परिवेश से जोड़ पाएँ।
प्रेमचंद ने इस उपन्यास में समाज की कुरीतियों एवं समस्याओं का चित्रण करके लोगों को इसके समाधान की तरफ अग्रसर होने का संदेश दिया है। इसमें मुख्यत: दो बड़ी समस्याओं का वर्णन किया है - पहला दहेज प्रथा एवं दूसरा अनमेल विवाह। भारत देश के दृष्टिकोण से मध्यमवर्गीय परिवार की अधिकतर युवतियों को इन समस्याओं के साथ आज भी गुज़रना पड़ता है। ऐसे में प्रेमचंद जी का यह उपन्यास लोगों को इन सामाजिक बुराइयों से लड़ने एवं उनका समाधान ढ़ूढ़ने के लिए भी प्रेरित कर सकता है। बड़ी बारीकी से इस उपन्यास का अध्ययन करके पता चलता है कि संदेह एक ऐसी समस्या है जो आज परिवार, पड़ोस, हर जगह व्याप्त है। यह ऐसी समस्या है जो बेवजह लोगों की जिंदगी एवं परिवारों को तहस-नहस कर सकता है।
'निर्मला' उपन्यास नारी जीवन की एक करुण-त्रासदी है। यह मार्मिक उपन्यास कईं जगहों पर आपकी पल्कों को भिगो देगा, वहीं साथ-साथ आपको यह सोचने पे मजबूर कर देगा कि कैसे जीवन के कुछ अनुभव इंसान को कितना बदल देते हैं। उपन्यास के आरम्भ में जिस कोमल और चंचल लड़की से हमारा परिचय होता है, अंत तक आते-आते वह लड़की कहीं खो जाती है और एक कटु स्त्री में परिवर्तित हो जाती है। महिला-पुरुष के परस्पर संबंधों और एक महिला के आतंरिक द्वंदों को बड़ी ही सहजता और मार्मिकता से प्रस्तुत करता हुआ ये उपन्यास अंत में आपके मन में एक अजीब-सा सन्नाटा फैला देता है जिसे आप उपन्यास पढ़के ही महसूस कर सकते हैं।