'नालन्दा' को जला दिया तुमने
और तनिक भर भी नहीं सोचा
कि जल गए होंगे उसके साथ
कितने इतिहास,
और न जाने कितना भविष्य !
तुमने बग़्दादी किताबों को पानी कर दिया
पर तुम भूल गए
कि स्याही से काली हुई नदियाँ
सींचती हैं सदियों तक
हर कलमकार के इंक़लाब को !
तुमने 'पाश' को सूली पर चढ़ा दिया
पर शायद ही तुम्हें ख़बर थी
कि "सबसे ख़तरनाक़" वो कविता निकलेगी
जो "घास" की तरह लहरायेगी
किसी रोज तुम्हारी ही कब्र पर !
तुमने इश्क़ को दीवारों में चुनवा दिया
पर काश तुम समझ पाते
कि महलों के जर्रे-जर्रे में क़ैद मोहब्बत का लहू
केरोसीन बनकर भस्म कर देगी
दोगले प्यार की तुम्हारी दुनिया को !
तुमने लाखों यहूदियों का क़त्ल कर दिया
पर बेशक तुम्हें नहीं पता
कि हिंसा के भ्रष्ट भूख में
नहीं मिटते हैं लोग,
बल्कि मिट जाता है ख़ुद धर्म !
तुम मुझे यकीनन नहीं समझ सकते
पर मैं चाहूँगा कि तुम्हें इल्म हो
कि तुम बस एक दीमक हो
और तुम्हारे अवशेषों से ही जन्मेगी
एक दिन, एक नई रचना, एक नई किताब !