“सूरज का सातवाँ घोड़ा", एक लघु उपन्यास है, जिसके रचयिता डॉ. धर्मवीर भारती हैं। इसमें भारती पाठकों का ध्यान आर्थिक स्थिति से उत्त्पन हुए सामाजिक समस्याओं के ओर आकर्षित करते दिखाई पड़ते हैं। यह धर्मवीर भारती की पुस्तक को प्रकाशित होने के इतने साल बाद भी प्रासंगिक बनाता है। यह शीर्षक हिंदू पौराणिक कथाओं में सूर्य देवता के रथ का संदर्भ है, जिसे सात सफेद घोड़े खींचते हैं।
इस उपन्यास में माणिक मुल्ला, एक कहानीकार, सात कहानियाँ सात दोपहर में अपने मित्रों को अनोखें निष्कर्ष के साथ प्रस्तुत करते हैं। माणिक मुल्ला की कहानियाँ उनसे अलग नहीं है, बल्कि उनमें वह मुख्य भूमिका निभाते हुए मालूम होते हैं। वह इन कहानियाँ को 'प्रेम कहानियाँ' कहते हैं, यह कहानियाँ प्रेम के इर्द गिर्द घूमती हैं और प्रेम के परोक्ष आये भाव और उस से उत्पन्न हुई सामाजिक समस्याओं को बेहद ही संवेदनशील तरीके से प्रदर्शित करती हैं। अक्सर साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है, जिसमें साहित्य की सभी विधाएँ, विशेषतः कथा साहित्य, सामाजिक यथार्थ को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से व्यक्त करती हैं। कभी जीवन में ऐसा भी वक्त आता है कि हमे अपने जीवन की इच्छाओं को रौंदकर आगे बढ़ना होता है। इस उपन्यास में जमुना और लिली की प्रेम कहानियाँ पाठक के ध्यान को इसी ओर आकर्षित करते हैं।
उपन्यास में माणिक मुल्ला गर्मियों की सात आलसी दोपहरों में अपने दोस्तों को तीन महिलाओं के असफल प्रेम की कहानी सुनाते हैं। तीन नायिकाएँ हैं, जमुना जो कि एक साधारण मध्यम वर्गीय घरेलू लड़की है, लिली जो एक बौद्धिक, स्वतंत्र, मजबूत तथा नारीवादी लड़की है और सत्ती जो एक साहसी निम्न वर्ग की महिला है। तीनों को अलग-अलग समय पर माणिक मुल्ला से लगाव हो जाता है। कहानी शुरू होती है माणिक व जमुना की कहानी से लेकिन वह आगे बढ़ती हुई जमुना व तन्ना की कहानी बन जाती है, लेकिन वह भी नहीं बन पाती और जमुना और रामधान की कहानी बन के सामने आती है। इसी प्रकार माणिक और लिली की कहानी भी आगे बढ़कर लिली और तन्ना की कहानी बन जाती है लेकिन वह भी पूर्णता को प्राप्त नहीं होती। माणिक और सत्ती की कहानी भी आगे बढ़कर अन्य पत्रों की कहानियों में गुम होती प्रतीत होती है। इस कहानी में उनका जीवन 'रोलर कोस्टर राइड' की तरह चलता नज़र आता है। सत्ती का जीवन इस कदर करवट फेरता है कि जो कभी व्यापरीन थी, उसे जीवन यापन के लिए भीख का सहारा लेना पड़ता है। इन सबके बावजूद इन सब बातों कहानियों में प्रेम की अहम भूमिका रही जिसे जगह-जगह पर दर्शाया भी गया है, आर्थिक स्थिति को भी प्रेम के साथ कई बार अलग-अलग माध्यम से दर्शाया है तो ये सवाल आना तो स्वाभाविक है कि "क्या प्रेम आर्थिक स्थिति से सिंचित होता है?"
इसका जवाब यह उपन्यास माणिक मुल्ला नामक पात्र के माध्यम से बेहद ही नुक्ता तरीके से देता है। वैसे तो माणिक मुल्ला को इसमें एक दार्शनिक और एक समझदार इंसान के रूप में प्रदर्शित किया गया है जो कहानियाँ सुनाकर समाज और अपने मित्रों का मार्गदर्शन करना चाहते हैं किंतु कहानी के कई अंग और कई बार उनके व्यवहार, पाठकों को उन्हें "इच्छाओं के बंधक" होने की ओर इशारा करते हैं। माणिक मुल्ला का सत्ती के साथ कशिश का आनंद और भरोसे में दिए धोखे, उनके व्यक्तिगत स्वभाव की पूर्ण सैर करवाती है। भरोसे में मिला धोखा काफी दर्दनीय होता है, यह हमे उपन्यास से ली गयी निचे की पंक्तियाँ बतलाती है।
"सत्ती उनसे पूछती रही, 'कहाँ चलोगे? कहाँ ठहरोगे? कहाँ नौकरी दिलाओगे? मैं अकेली नहीं रहूँगी!" इतने में एक हाथ में लाठी लिए महेसर और एक में लालटेन लिए चमन ठाकुर आ पहुँचे और पीछे-पीछे भइया और भाभी। सत्ती देखते ही नागिन की तरह उछल कर कोने में चिपक गई और क्षण-भर में ही स्थिति समझ कर चाकू खोल कर माणिक की ओर लपकी,' दगाबाज! कमीना! ' पर भइया ने फौरन माणिक को खींच लिया, महेसर ने सत्ती को दबोचा और भाभी चीख कर भागीं।"
इस उपन्यास को पूर्णतः पढ़ने से यह समझ आता है कि जिसे हम प्रेम कहानियाँ कहते हैं वह प्रेम कहानियाँ है ही नहीं बल्कि निम्न मध्यवर्ग की जिंदगी का चित्रण है। जीवन में प्रेम से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है आर्थिक संघर्ष और नैतिक विश्रृंखलता। इसीलिए इसमें अनाचार, निराशा, कटुता और अँधेरा छा गया है। लेकिन, लेखक का मानना है कि इस अँधेरे में भी कुछ ऐसी चीजें हैं जो हमें आगे बढ़ने की ताकत और प्रेरणा देती हैं। ये चीजें हैं विश्वास, साहस और सत्य के प्रति निष्ठा। ये चीजें उस प्रकाशवाही आत्मा को आगे ले जाती हैं जैसे सात घोड़े सूर्य को आगे बढ़ा ले चलते हैं।
लेकिन, हमारे वर्ग-विगलित, अनैतिक, भ्रष्ट और अँधेरे जीवन की गलियों में चलने से सूर्य का रथ काफी टूट-फूट गया है और आगे के छ: घोड़े की स्थिति काफी खराब हो गई है। अब बचा है तो सिर्फ आखिरी घोड़ा, जिसे भविष्य का घोड़ा कहा गया है, ये अभी भी साबित है और आगे बढ़ रहा है। यह घोड़ा, तन्ना, जमुना और सत्ती के मासूम बच्चों का प्रतीक है जो एक बेहतर और उज्ज्वल भविष्य का आश्वासन देते हैं। उपन्यास का नाम 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' इसी आशा को दर्शाने के लिए रखा गया है।
कहानी की शैली काफी सरल है और हर एक दोपहर के बाद लेखक अपने व्यंगात्मक प्रसंग से पढ़ने वालों को विचारों की दुनिया में खोने पर मजबूर कर देते हैं।