जब काल संगणित परिप्रेक्ष्यों में, होगा महावीरों का गान,
रक्त-रंज सरिता परिजन की, बहे सुर-सरि धार समान,
लिए सारथी हरि को रथ पर, जो गांडीव चलाएगा,
निर्दय घोर-अधर्मी मानव, वह अर्जुन कहलायेगा।
सुनो धनंजय धीर धनुर्धर, द्रोण शिष्य उत्तम जग में,
घृणा घनित जब एकलव्य का, बाण श्वान निपुणित मुख में,
वचन बद्ध जब गुरु-दक्षिणा में, अंगुष्ठ ले जाएगा,
दम्भी घोर-अधर्मी मानव, वह अर्जुन कहलायेगा।
कुरुक्षेत्र कण-कण में अंकित, पार्थ पाप का भार सकल,
तात भीष्म के रजत कवच पर, छलपूर्वक धनु-वार प्रबल,
ले आड़ शिखंडी कुरु-दिग्गज की, शर-सय्या बनवाएगा,
कायर घोर-अधर्मी मानव, वह अर्जुन कहलायेगा।
कुरु चतुरंगिणी सेना को, मृत्यु से साक्षात्कार किया,
द्विज-श्रापग्रस्त महादानी से, कुंडल का जीवनदान लिया,
रथ वंचित अपने अग्रज पर, जो दिव्यास्त्र चलाएगा,
कपटी घोर-अधर्मी मानव, वह अर्जुन कहलायेगा।
बिन फल की आकांक्षा के, कुकर्म किए जिसने सारे,
केशव कृत पथ प्रतिकृति में, थे पुण्य सभी जिसने हारे,
गीता-दर्पण में जो निज का, प्रतिबिंब भी देख न पाएगा,
ग्लानि शोक पाप का भागी, वह अर्जुन कहलाएगा।