तुम्हे साथ चलने क्या कहूं!
तुम स्वतंत्र सरिता सी बहकर,
निज मार्ग निरंतर बना रही,
उल्लास उमंग से भरी जीवन के,
सागर से मिलने जा रही,
मै शक्तिहीन ऊर्जा विहीन,
क्या दिशा तुम्हारी मोड़ सकूँ
तुम्हे साथ चलने क्या कहूं!
पवन के झोंके सी तुम आ टकराई,
मैं शिथिल विशादीत पड़ा रहा,
उड़ी लहराती तुम वेग से अपने,
मैं तुम्हें देखता खड़ा रहा,
निरंकुशता ही सौन्दर्य तुम्हारा,
किस स्वार्थ से बंधन धरूं,
तुम्हे साथ चलने क्या कहूं!
मेरे साथ चल क्यों थमो तुम,
तुम आगे बढ़ कर खो जाना,
जो बिन देखें तुमको तड़पेंगी,
उन आंखों से ओझल हो जाना,
गति मंद ना हो किसी जगह तुम्हारी,
इस विश्वास से ही खुश रहूं,
तुम्हे साथ चलने क्या कहूं!
है ज्ञात के फिर ना मिल पाएंगे,
खोज में जीवन पथ कट जाएगा,
परिश्रांत हृदय को धड़कन का,
कुछ कारण तो मिल जाएगा,
किंतु आस में बीते सारे क्षण,
विरह की वेदना मुस्कुरा कर सहूं,
तुम्हे साथ चलने क्या कहूं!