ज़िंदगी के दौर में,
रफ़्तार की क्या अहमियत।
रफ़्तार ग़र थम जाये,
तो जाग जाती है इंसानियत।
महल में रहने वालों को,
मिल जाती है इक दस्तक।
रफ़्तार के दम पर इन्सान,
गुरूर करेगा यूँ कबतक।
सागर से मिलकर नदी जब,
खो देती अपने अस्तित्व को।
रो पड़ता है मीठा पानी,
गले लगा खारे भविष्य को।
नयी दुनिया, नया आसमां,
नयी रफ़्तार, नये विचार।
ताक रहा है दूर खड़ा,
श्वेत शिखर पर्वत महान।
गुमां इतना कि पवन को थामे खड़ा है,
यकीं इतना कि रफ़्तार को बाँधे खड़ा है।
देखा ज़रा सर उठाकर जब रवि को,
दे दिया मुँहतोड़ जवाब, उसी की चोटी पर पवन की रफ़्तार ने।
चुप है देखो झील का पानी,
कर्तव्य कमल समेटे हुए।
मचल उठे ग़र बाहरी रफ़्तार से,
मुरझा जायेंगे अनगिनत पुष्प उसके।
मज़ा नहीं ग़र ज़िंदगी में रफ़्तार न हो,
पर उस रफ़्तार में किसी का गम न हो।
सागर की चाह में दौड़ना जायज़ है,
पर उस दौड़ में रफ़्तार का कोई मज़हब न हो।