विन्सेन्ट वैन गोह, इतिहास के सबसे प्रसिद्ध चित्रकारों में सम्मिलित हैं। अपने रचनाकाल से एक शताब्दी बाद भी उनकी कला अनेकों रचनाकारों को प्रभावित करती है परंतु इस स्तर तक पहुंचने से पहले यह कलाकार भी एक लक्ष्यहीन नवयुवक था। अनेक महान हस्तियों की तरह इनके जीवन में भी वह काल आया जब इन्हें जीवन की निरर्थकता ने घेर लिया।
जनवरी १८७९ में, २६ वर्षीय वैन गोह हाई स्कूल की पढ़ाई अधूरी छोड़ एक छोटे से गाँव के चर्च में धार्मिक शिक्षक बन गये। परंतु उन्हें इस काम से भी निकाल दिया गया। वह पास के एक गांव में एक झोपड़ी में रहने लगे। उनकी इस स्थिति से उनका परिवार व्यथित था और उनके छोटे भाई थियो इस विषय में उनसे बात करने आए। उनका परिवार उनकी लक्ष्यहीनता और सामान्य नौकरियों और व्यावसायों के प्रति उदासीन व्यवहार से परेशान था और इसको लेकर दोनों भाइयों में तीखी बहस हुई और थियो वहाँ से चले गये।
१४ अगस्त, १८७९ को वैन गोह ने अपने भाई को यह पत्र लिखा और उससे और अपने परिवार से यह आग्रह किया कि उन्हें थोड़ा समय दिया जाए और अपना मार्ग चुनने की स्वतंत्रता दी जाए।
----------------------------------------------------------------------------
मेरे प्रिय थियो,
मैं यह पत्र इसलिए लिख रहा हूँ, ताकि तुम्हें बता सकूँ कि तुम्हारे आने के लिए मैं कितना शुक्रगुज़ार हूँ। काफ़ी वक़्त हो गया एक दूसरे को पत्र लिखे या पहले की तरह मिले हुए। हम एक दूसरे के लिए मरे नहीं हैं, बल्कि अभी भी कुछ महसूस करते हैं! ऐसा इसलिए क्योंकि बिना मृत घोषित हुए ही मृत बने रहना मात्र एक दोगलापन है; और यदि दोगला होना नहीं, तो यकीनन बचकाना होना है। यह ठीक उसी प्रकार बचकाना है जैसे एक चौदह वर्ष का बालक यह समझता है कि उसकी गरिमा और सामाजिक प्रतिष्ठा उसे एक रेशमी हैट पहनने के लिए विवश करती है। हमने जो समय साथ बिताया, वह हमें बताता है कि हम अब भी जीवित हैं। जब मैंने तुम्हें दोबारा देखा और फिर हम साथ में टहले, तब मुझे वही अनुभूति हुई जो पहले थोड़ी ज्यादा हुआ करती थी कि जीवन अद्भुत और बहुमूल्य है और व्यक्ति को इसका आनंद लेना चाहिए। मैंने खुद को काफ़ी समय बाद इतना प्रसन्न और जीवित पाया क्योंकि खुद को समझाने के बाद भी मुझे जीवन मूल्यहीन, महत्वहीन और उदासीन ही लग रहा था। जब कोई दूसरे के साथ समय व्यतीत करता है और उनसे प्रेम करता है, तब उसके पास जीने की एक वजह होती है। तब वह खुद को बेकार महसूस नहीं करता, बल्कि पाता है कि वो किसी न किसी चीज़ में अच्छा है, यह मानते हुए कि उन्हें एक दूसरे की ज़रूरत है और वो दोनों ही हमराही हैं। हालांकि मैं यह ज़रूर मानता हूँ कि उचित आत्मसम्मान दूसरों से आपके संबंधों पर भी निर्भर है।
लम्बे समय तक एकांत कारावास में रहे कैदी पर ठीक वैसा ही असर दिखेगा जैसा कि एक लम्बे समय तक भूखे रहे व्यक्ति पर दिखता है। सभी की तरह मुझे भी दोस्ती, लगाव और विश्वास के रिश्तों की ज़रूरत है। मैं किसी पत्थर या लोहे के स्ट्रीट पंप या लैंप-पोस्ट जैसा नही हूँ! किसी भी सभ्य इंसान की तरह मुझे भी उन रिश्तों की कमी और उनके बिना खालीपन महसूस होता है। मैं तुम्हें यह सब बता रहा हूँ ताकि तुम्हें पता चले कि तुम्हारे आने का मुझपर कितना सकारात्मक प्रभाव पड़ा। जैसे कि मैं तुमसे अलग नहीं होना चाहता, वैसे ही मैं घर के अन्य सदस्यों से भी दूर नहीं होना चाहता। किन्तु इसके बाद भी मेरी इच्छा है कि मैं यहीं रहूँ क्योंकि अभी वहाँ जाने से मुझे डर लग रहा है। हालांकि इसमें मेरा खोट भी हो सकता है, और तुम सही हो सकते हो कि मेरा नज़रिया सही नहीं हैं , इसलिए कठिन रास्ते और अपनी असहजता के बावजूद भी, कुछ दिनों के लिए एतेन जा रहा हूँ।
जब मैं हमारी उस मुलाकात के बारे में सोचता हूँ तो हमारी बातें याद आ ही जाती हैं। मैंने पहले भी बहुत बार ऐसी बातें सुनी हैं- योजनाएं खुद को बेहतर करने की, बदलने की, जीवन में उत्साह और उमंग लाने की- मगर मुझे इनसे थोड़ा डर लगता है। यह सुनकर क्रोधित और विचलित न होना; ऐसा इसलिए है क्योंकि मैंने पहले भी इन बातों पर अमल किया और विफल रहा। यह बातें यकीनन भली बातें हैं पर मुझे यथार्थसंगत नहीं लगतीं।
एम्स्टर्डम की यादें अब भी कितनी ताज़ा हैं। तुम वहाँ थे इसलिए जानते हो कि हमने कैसे हर पहलू पर सोच समझ कर, विचार-विमर्श के साथ भलाई के लिए फैसला लिया मगर फिर भी उसका परिणाम दयनीय ही रहा। पूरा मसला ही एक मूर्खता साबित हुई! मुझे ये दिन उस बीते समय के बदले बड़े लुभावने लगते हैं। मुझे इस बात का डर है कि सबसे भले इरादों के साथ दी गयी सलाह पर भी कहीं अमल करने पर कुछ वैसा ही परिणाम होगा। ऐसे अनुभवों ने मुझपर बहुत तीक्ष्ण प्रभाव डाला है और जो दुःख, पछतावा और दर्द हम झेल रहे हैं वो इसका ही नतीजा है। यदि हम अब भी नहीं समझे तब फिर कब समझेंगे? एक निर्धारित लक्ष्य के पीछे अंधी दौड़ में लगने और सफल होने की महत्वाकांक्षा अब मुझमें मर सी गयी है। मैं अपनी मृत्यु तक स्वाभाविक रूप से पहुँचूँगा ना कि इस समाज के निर्धारित मापदंडों के अनुसार। मैं किसी घास छीलने वाले श्रमिक से बेहतर शिक्षा प्राप्त कर सकता हूँ बजाए ग्रीक में लिखी किताबों से।
क्या मैं अपने जीवन में सुधार नहीं लाना चाहता? या फिर क्या मुझे स्वयं में सुधार लाने की आवश्यकता ही नहीं है? नहीं! ऐसा नहीं है। मैं भी बेहतरी चाहता हूँ किन्तु सिर्फ इसलिए वो उपचार नहीं अपना सकता जो अंततः रोग से ज़्यादा घातक साबित होंगे। क्या यह मरीज़ की भूल है कि वह अपना गलत उपचार नहीं करवाना चाहता?
अगर तुम्हें मेरी बातों से ऐसा लगा कि मैं तुम्हें नीम-हकीम कहना चाह रहा हूँ तो तुम गलत हो क्योंकि मेरे मन में ऐसी कोई धारणा तुम्हारे प्रति नहीं है, ना ही मैं ये मानता हूँ कि तुम्हारी सलाह से मेरा कोई नुकसान होगा। पर इसका मतलब यह भी नहीं कि तुम्हारी सलाह पर हू-ब-हू अमल करके मैं लिथोग्राफर, मुंशी, या बढ़ई का काम करूँगा या हमारी प्रिय बहन ऐना की बात मान कर बेकर या अन्य कोई ऐसा ही सामान्य काम करूँगा। तुम्हारे मुताबिक़ यह सलाह इसलिए है क्योंकि मैं आलसी हो गया हूँ और मुझे अपनी समय व्यर्थ करने की आदत को छोड़ना होगा।
मैं तुम्हें किस प्रकार समझाऊँ कि यह अकर्मण्यता, यह निष्क्रियता साधारण नहीं है। मुझे पता है कि निकम्मेपन के इस आरोप से अपनी रक्षा करना मेरे लिए कठिन है, पर मुझे बहुत दुःख होगा यदि इस निष्क्रियता को लेकर तुम मेरा नज़रिया समझने में असफल रहोगे। पर मुझे नहीं लगता कि मैं किसी बेकर का काम शुरू करने पर भी इन आरोपों से बच पाऊंगा, तब भी मैं नाकारा और निरुद्देश्य ही रहूँगा। यह तो वैसी ही मूर्खता होगी जैसी हमने उस कहानी में सुनी है- जिसमें एक गधे-सवार व्यक्ति को जब समाज अत्याचारी बोलता है तो वह व्यक्ति गधे को कंधों पर उठा कर चलने लगता है।
ख़ैर मज़ाक की बात और है, लेकिन मेरा यह मानना है कि यदि हम एक दूसरे पर और विश्वास दिखाएं तो ये हमारे रिश्ते के लिए बेहतर ही होगा। यदि मैं तुम्हारे एवं सभी परिवार वालों के लिए एक बोझ बन गया हूँ, किसी काम के लायक नहीं हूँ और यदि तुम्हारी उपस्थिति में मेरे साथ किसी पराये की तरह व्यवहार किया जाता रहा, तो ये मेरी लिये अत्यंत ही पीड़ादायी है; और मुझे इस कष्ट से संघर्ष करना ही होगा। मुझे यह बातें कचोटती हैं और इनसे भी कहीं ज़्यादा यह कि मैं अपने परिवार के लिए इतने दुःख का कारण बन गया हूँ।
यदि सच में ऐसा है, तो मैं यही इच्छा रखता हूँ कि मुझे अधिक समय जीवित ना रहना पड़े। पर ऐसे विचार जब मुझे लंबे समय तक बहुत व्यथित और दुःखी कर देते हैं, तब एक खयाल और आता है कि शायद यह सब बस एक बुरा स्वप्न है और कुछ नहीं; इसके समाप्त होने के बाद हम इसे बेहतर समझ पाएंगे। यह भी सच है की यह वास्तविकता ही है और एक दिन परिस्थितियों में सुधार ज़रूर आएगा।
इस सुधार की उम्मीद बहुत लोगों को हवाई और मूर्खतापूर्ण भी लग सकती है। कभी कभी, ठंड का मौसम इतना कठोर और क्रूर हो जाता है कि गर्मियों की अपेक्षा करना मुझे भी व्यर्थ लगता है; जैसे बुरे ने अच्छे को कहीं पीछे छोड़ दिया हो! मगर इसके बाद भी, हम चाहें या न चाहें, एक दिन वो क्रूर सर्द मौसम बीत ही जाता है; सूरज निकलता है, वसंत की बयार चलती है और बर्फ पिघल जाती है। ये बातें हमारी परिस्थितियों के परिपेक्ष्य में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं और मुझे उम्मीद है कि हमारे और तुम्हारे लिए भी ऐसा ही होगा।
यदि प्रत्युत्तर दो तो जल्द ही देना, मुझे अच्छा लगेगा। तुम्हारे जाने के बाद, उस दिन वासमेस तक टहलने गया था, एक चित्र भी बनाया है। इसी के साथ मुझे विदा दो और मुझ पर अपना विश्वास बनाए रखो।
तुम्हारा प्रिय,
विन्सेन्ट वैन गोह
---------------------------------------------------------------------------