ज़िन्दगी तनहाइयों में बसर करती है,
मुझमें मैं नहीं अब तूँ सफ़र करती है!
तमाम उम्र मैं जिया हूँ अपने दर्द में,
तेरा दर्द मरहम सा असर करती है!
मैं औ किसी पे दिल हारता क्यों नहीं,
तिरी अदा में क्या है जफर करती है!
सारा सितम मुझ पर ही क्यों सनम,
तूँ ही ख़ुदाया तूँ ही नज़र करती है!