देखो अवसर की किरण, क्षितिज के पार उठो
छोड़ पुरानी बातों को गिरकर साथी हर बार उठो
क्या कभी नहीं उल्लासों में, शोकाकुल पृथ्वी होती है
क्या कभी नहीं नदिया कोई अपनी प्रिय धारा खोती है
जीवन के जटिल तूफानों में, उपवन के दिये बुझ जाते हैं
उस धूल भरी सी आँधी में फल वृक्ष कई गिर जाते हैं
फिर जीवन नया बसाने में देखो उपवन का प्यार उठो
याद करो गीता का वो सार उठो
छोड़ पुरानी बातों को गिरकर साथी हर बार उठो
सफल अथक परिश्रम भी हर बार नहीं हो पाता है
मन बाहर से तो हंसता है पर हार नहीं सह पाता है
देख पराजय सम्मुख किन्तु वीर अडिग ही रहते हैं
अस्तित्व नहीं उनका मरता वे अमर याद में रहते हैं
पहन हार का हार सहकर ये सारी मार उठो
ये बोझ तुम्हारा ही है, लेकर ये सारा भार उठो
छोड़ पुरानी बातों को गिरकर साथी हर बार उठो