लाल आज बरसों बीते
तब तुम घर को आए हो
सूख गए जब नैन ये प्यासे
तब तुम घर को आए हो?
इन हाथो ने तुम्हें खिलाया,
तुम्ही निवाले भूल गए
काला टीका तुम्हें लगाया
नज़र चुरा तुम भूल गए।
टूट गयी जब आस सभी
तब क्या कहने तुम आए हो?
तब तुम घर को आए हो...
उम्र बिताई लंबी मैंने
बैठ इसी एक चौखट पे
चौंक-चौंक कर राह निहारी
आती हर इक आहट पर,
आज उठी अर्थी जब मेरी
क्या लेने फिर आए हो?