अजीब ही डर लगता है
कि कभी बैठने को तो कभी उड़ जाने
को दिल करता है|
पँख लगाकर उड़ जाने को दिल करता है
फिर पँख फैलाने को ही जी डरता है|
देख चिडियों के उधड़ें पँख,
बस, अब बैठ जाने को दिल करता है|
अरे पुछते हो, परेशां क्यूँ हूँ?
हाँ, कि कभी बैठ जाने को दिल करता है
तो कभी मीलों उड़ जाने