कलयुग में रह सतयुग के सत्कर्मों को चुनना होगा
रामराज्य की चाह करो तो रामा सा बनना होगा।
मिले प्रेम में छल पग पग में, ऐसा है संसार अभी
प्रेम से विष अमृत बन जाता, न समझें ये जीव कभी
चाहो जो राधा सा तुमको निश्छल जग में प्रेम मिले
प्रेम प्रियतमा से तुमको भी केशव सा करना होगा।
रावण-मेघनाद सा सबके मन में अज है द्वेष बसे
पुतला चौराहे पे जलता घर-घर में लंकेश बसे
अगर चाहते घर खुशियों से सुन्दर इक मंदिर हो तो
भीतर के रावण का तुमको आज दहन करना होगा।
देश की रक्षा में अपने जो प्राण दान कर देते हैं
ऐसे वीर लहू से भूमि की बंजरता हर लेते हैं
अगर चाहते भूमि पर न खल कोई अधिकार करे
मातृभूमि से प्रेम पितामह सा तुमको करना होगा।
धर्म को आगे करके लड़ते हिन्दू मुस्लिम सिख सभी
धर्म की परिभाषा क्या है न इसको समझें जीव कभी
अगर मानते पूज्य धर्म को तो इसका तुम सार सुनो
छोड़ अधम की बातों को अब धर्मराज बनना होगा।