उठो मनु अब इस जीवन में आशा का दीप जलाना होगा
हार गए तुम जिस बगिया को पुष्प वहीं खिलाना होगा
फूलों को जो प्रेम किया तो काँटों को क्यूँ भूल गए,
नहीं पता क्या काँटों बिन भी फूल कहाँ रह पाता है,
फूल संग तो कांटा भी सबके ही भाग्य में आता है
वीर नहीं जो देख काँटों को मार्ग से मुड़ जाते हैं
लक्ष्य देखके वीर तो फिर काँटों पे भी चढ़ जाते हैं
छीन लिया जो सब कुछ तुमसे उसे जीत अब लाना होगा
उठो मनु अब निर्जन ताल में कमल का फूल खिलाना होगा |
पान किया तुमने जो मधु का, विष को क्यूँ फिर छोड़ दिया
नहीं पता क्या मधु से पहले विष ही जग में आता है
बिना पान के विष इस जग को कोई नहीं तर पाता है
तकदीरों के रहे भरोसे कौन वीर कहलाता है
वीर वही जो बवंडरों के बीच में भी टिक पाता है
अंधकार हो गया है भीषण, अब पक्षी को घर आना होगा
उठो मनु अब इस जीवन में आशा का दीप जलाना होगा |
हार गए तुम आसमां फिर जमीं को भी क्यूँ छोड़ दिया,
माना की तुमने एक पल भी इसका न है मोह किया,
लेकिन बिना मोह के मानव जग में क्या ही पाता है,
सफलता का मोह वीर को पथ से अडिग बनाता है,
वीर तभी अपनी वीरता का परचम जग में लहराता है
उठो मनु अब तुमको भी ये रण जीत वीर कहलाना होगा
सूरज बनके जीवन का अपने अब अंधकार मिटाना होगा |