किसी की शिकायतों का किसी को क्या पता
इस दिल की आफतों का किसी को क्या पता
धड़कनों की खड़क से ही रही सदमे में जाँ मेरी
भला मौत की आहटों का किसी को क्या पता
सब हैं हैंरा हम पथर से दिल लगाकर खुश हुए
अब पथर की चाहतों का किसी को क्या पता
खिले हैं जो सुबह-ओ-शाम गुल की तरह मुझमें
वो तेरी उन मुस्कराहटों का किसी को क्या पता
तमाम खुदाओं की लड़ाइयों से भरे इस खराबे में
'जतिन' इश्क़ की राहतों का किसी को क्या पता