प्रिय मित्र,
मेरी आशा है कि यह अपील हर अंग्रेज तक पहुँचे और वह इस पर विचारपूर्वक ध्यान दे।
मैं पहले अपना परिचय दे देता हूँ। मैं यह विनम्रता के साथ कह सकता हूँ कि अभी तक किसी भी भारतीय ने ब्रिटिश सरकार का उतना सहयोग नहीं किया होगा, जितना मैंने अपने सार्वजनिक जीवन के अनवरत उन्नतीस वर्ष की अवधि में किया है और वह भी उन परिस्थितियों में, जो शायद किसी भी अन्य व्यक्ति को एक विद्रोही बनाने में सक्षम थीं। विश्वास करें कि मेरा सहयोग आपके कानून से उत्पन्न भय के कारण नहीं था, न ही अपने किसी स्वार्थ पर आधारित था। वह स्वतंत्र और स्वैच्छिक सहयोग था, इस विश्वास के आधार पर कि ब्रिटिश सरकार की सभी गतिविधियाँ भारत के लाभ पर केंद्रित थीं।
ब्रिटिश साम्राज्य के ख़ातिर मैंने अपना जीवन चार बार जोखिम में डाला-
*बोअर युद्ध के समय जब मैं एम्बुलेंस कोर का कार्यभारी था (जिसका उल्लेख जनरल बुलर के प्रेषण में किया गया था),
*नताल में ज़ूलू विद्रोह के समय जब मैं ऐसे ही एक और कोर का प्रभारी था,
*लेट वॉर की शुरूआ'त के समय जब मैंने एक एम्बुलेंस कोर खड़ी की (कड़े प्रशिक्षण के चलते मुझे फुफ्फुसा की गम्भीर समस्या का सामना करना पड़ा),
*और आख़िरी बार, जब दिल्ली में युद्ध सम्मेलन में लॉर्ड चेम्सफोर्ड को दिए अपने वादे को पूरा करने के लिए मैंने खुद को खेड़ा जिले के सक्रिय भर्ती अभियान में झोंक दिया, जिसके प्रशिक्षण में लंबी और दुर्गम मार्च शामिल थी। वहाँ मुझे पेचिश का दौरा पड़ा जो कि लगभग जानलेवा साबित हुआ था।
मैंने यह सब इस विश्वास के साथ किया कि ये प्रयास मेरे देश को साम्राज्य में एक समान दर्जा दिलाने में योगदान देंगे। इसी चलते मैंने अभी पिछले दिसम्बर तक ब्रिटिश अधिकारियों का सहयोग एवं भरोसा हासिल करने के लिए अथक प्रयास किये। मुझे पूर्ण विश्वास था कि मि. लॉयड जॉर्ज मुसलमानों से किए अपने वादे को पूरा करेंगे और पंजाब में हो रहे आधिकारिक अत्याचारों का खुलासा कर पंजाबियों के लिए स्थिति बेहतर बनाएंगे, लेकिन मि. लॉयड जॉर्ज के विश्वासघात, आपके द्वारा इसकी सराहना और इसी के साथ पंजाब में हो रहे अत्याचारों के प्रति एक सामान्य स्वीकृति ने, सरकार के नेक इरादों और इसका समर्थन कर रहे राष्ट्र पर मेरे विश्वास को पूरी तरह चकनाचूर कर दिया है। अब भी, आपके अच्छे इरादों में मेरा विश्वास भले ही ख़त्म हो गया हो, किन्तु मैं आपकी बहादुरी को पहचानता हूँ। और यह भी जानता हूँ कि आप कभी न्याय और तर्क के सामने नहीं झुकेंगे, लेकिन बहादुरी के आगे झुकने में हर्ज़ भी ना करेंगे।
भारत के लिए इस साम्राज्य के मायने कुछ इस तरह हैं -
*ग्रेट ब्रिटेन की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भारत के संसाधनों का शोषण,
*लगातार बढ़ता सैन्य खर्च,
*दुनिया की सबसे महंगी एवं खर्चीली सिविल सेवा व्यवस्था,
*हर वो सरकारी महकमा जो भारत की गरीबी को नज़रअंदाज़ कर फ़िज़ूलख़र्ची करता है,
*एक सम्पूर्ण राष्ट्र का निरस्त्रीकरण, जिसका परिणाम राष्ट्र की निर्बलता है। कहीं ऐसा न हो कि एक सशस्त्र राष्ट्र(ब्रिटेन) आप *जैसे मुट्ठी भर सरकारी नौकरों की ज़िंदगी खतरे में डाल दे क्योंकि आप इस समय एक निर्बल राष्ट्र का हिस्सा हैं,
*अस्थिर प्रशासन को बनाए रखने के उद्देश्य से शराब और ड्रग्स की निरंतर तस्करी का जारी रहना,
*राष्ट्र की पीड़ा को अभिव्यक्ति देने की मांग करते आंदोलन को दबाने के लिए दमनकारी कानून लागू करना,
*आपके अधिराज्यों में रहने वाले भारतीयों के प्रति आपका व्यवहार अपमानजनक रहा
*पंजाब प्रशाशन का महिमामंडन करके आपने ना सिर्फ हमारी भावनाओं को ठेस पहुँचाई बल्कि मुसलमानों की भावनाओं का भी उल्लंघन किया है।
मैं यह बात अच्छे से जानता हूँ कि यदि हम लड़कर आपसे सत्ता हथियाना चाहें तो इसमें आप ज़रा भी हर्ज़ नहीं करेंगे। आप भली-भांति जानते हैं कि हम ऐसी जंग लड़ने में समर्थ नहीं हैं क्यूंकि स्वयं आपने ही यह सुनिश्चित किया है कि हम एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष युद्ध लड़ने में अक्षम बने रहें। भले ही हम युद्धस्थल में अशक्त हो गए हों परन्तु हमारी आत्मा अभी शक्तिहीन नहीं हुई है, वह अभी भी सशक्त है। मुझे यह भी पता है कि आप उस आंतरिक शक्ति को तोड़ने का प्रयास करेंगे और इसीलिए मैं उस शक्ति को सुदृढ़ करने के कार्य में लगा हुआ हूँ।
असहयोग का अर्थ आत्म-बलिदान के लिए प्रशिक्षित होना है। जब हम जानते हैं कि इस महान देश को आपके प्रशासन द्वारा रोज़ गुलामी की तरफ ढकेला जा रहा है, फिर हमें आपके साथ सहयोग क्यों करना चाहिए? मेरी अपील के प्रति लोगों की यह प्रतिक्रिया मेरे व्यक्तित्व के कारण नहीं है। यदि आप ऐसा सोचते हैं, तो मैं चाहूंगा कि आप ना सिर्फ मुझे परन्तु अली भाईयों को भी ऐसे विचारों से अलग रखकर देखें। यदि मैंने मुस्लिम विरोधी प्रतिक्रियाओं को शांत कराने का मूर्खतापूर्ण प्रयास किया होता तब भी मेरा व्यक्तित्व इसमें विफल ही रहता। ठीक उसी तरह जिस तरह अली भाईयों का जादू भी मुसलामानों के सर चढ़कर ना बोलता अगर वो सिर्फ हिन्दू विरोधी भावनाओं को भड़काने में लगे रहते। लोग आज हज़ारों-लाखों की तादाद में हमारी बातें और भाषण सिर्फ इसलिए सुनने आते हैं क्यूंकि हम एक ऐसे राष्ट्र की आवाज़ को उठाते हैं जो आपके लोहे की एड़ियों के नीचे दबा हुआ कराह रहा है। अली बंधू भी आपके दोस्त थे जैसा मैं था, और अभी भी हूँ। मेरा धर्म मुझे आपके प्रति बुरे विचार रखने से रोकता है। यदि मैं सामर्थ्य रखता, फिर भी मैं आपके खिलाफ हाथ नहीं उठाता बल्कि मैं इन यातनाओं की करुणा से ही आपके ऊपर विजय प्राप्त करना चाहता हूँ। अगर मुमकिन होगा तो अली बंधू निश्चित रूप से अपने धर्म और अपने देश की रक्षा के लिए तलवारें उठाएंगे लेकिन उनका और मेरा उद्देश्य एक ही है - हिन्दुस्तान के सभी नागरिकों की भावनाओं को आवाज़ देना और वर्तमान संकट के उपाय ढूंढना।
आप इस बढ़ती हुई देशभक्ति को दबाने के उपाय की तलाश में हैं। इस पर मेरा बस इतना सुझाव रहेगा कि एक भावना को मिटाने के लिए इसकी उत्पत्ति के कारणों को हटाना आवश्यक है। आपके पास अभी भी शक्ति है, आप भारतीयों पर करे गए जुल्मों का पश्चाताप कर सकते हैं। आप अभी भी मि. ल्यॉड जॉर्ज को अपने वादों को पूरा करने पर मजबूर कर सकते हैं। मैं आपको आश्वश्त करता हूँ उन्होंने कई योजनाएं बनाई हुई होंगी। आप एक बेहतर वायसराय की मांग करके मौजूदा वायसराय को रिटायर होने के लिए मजबूर कर सकते हैं, आप सर मिशेल ओ 'ड्वायर और जनरल डायर के बारे में दोबारा विचार विमर्श कर सकते हैं। आप सरकार से एक कॉन्फ्रेंस बुलाने का आग्रह करें, जिसमे भारतीयों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि और मुख्यधारा से जुड़े राजनेता अपने विचार और सुझाव रखें ताकि स्वराज की सभी शर्तों पर विचार विमर्श हो और भारतीयों की इच्छा अनुसार उन्हें सत्ता एवं स्वराज सौंप दिया जाए।
लेकिन यह आप तब तक नहीं कर सकते जब तक आप हर भारतीय को समकक्ष और बंधु के रूप में नहीं देखते। मैं केवल एक मित्र के रूप में इस विराट संकट का एक सम्मानजनक समाधान सुझा रहा हूँ। दूसरा तरीका, भारतीयों का दमन, अभी भी आपके लिए खुला है। मैं भविष्यवाणी करता हूँ कि दमन की राजनीति विफल होगी, जिसकी शुरुआत हो चुकी है। सरकार ने पानीपत के दो बहादुरों को पहले से ही स्वतंत्र रूप से अपनी राय व्यक्त करने के लिए कैद कर लिया है। लाहौर में एक अन्य साथी को अपने स्वतंत्र विचार रखने पर हिरासत में लिया जा चुका है। अवध जिले में भी एक पहले से कैद है और एक फैसले का इंतज़ार कर रहा है।
आपको वर्तमान परिस्थितियों का पूर्ण अंदाज़ा है और हमारा अभियान भी इस दमन को ही ध्यान में रखकर चल रहा है। मैं आपको बेहतर समाधान चुनने और भारत के लोगों का साथ देने की सलाह दूंगा क्योंकि इसी मिट्टी का नमक आप भी खा रहे हैं। भारतीयों की इच्छाओं और आकांक्षाओं को दबा देना देश के प्रति गद्दारी के समान ही है।
मैं,
आपका विश्वसनीय दोस्त,
एम.के. गान्धी
**Original Letter can be accessed here:- https://bit.ly/3kN8lob