मैंने जलकर दी आयु बिता, पर जगती का तम हर न सका,
मैं जगती का तम हर न सका
मैं एक जलते हुए मुल्क का ध्वजवाही हूँ,
मैं एक सिपाही हूँ,
सिपाही, जो कभी जीतता नहीं, हारता नहीं
बस लड़ना जानता है।
सरहदों पर मरना जानता है
माँ को वक़्त निकालकर चिट्ठी लिखना भी जनता है
मैं महाभारत में भेड़ों - बकरियों की तरह कुचला गया हूँ
हल्दी घाटी में, पानीपत में, कारगिल में
गोलियों से, तलवारों से मारा गया हूँ।
कभी सिकंदर की विश्वविजय की ज़िद में,
कभी किसी राजा की नाक की रक्षा में,
तो कभी किसी तानाशाह की गद्दी को बचाने में
नफरतों के शतरंज में, हुक्मरानों का प्यादा बन,
क्षत-विक्षत शरीर, सीने में धंसी गोलियों के साथ
कभी नहीं और कभी कफ़न के साथ शहीद हुआ हूँ।
सरहदों पर जान हथेली पर लिए रहता हूँ,
घर की चौखट से लौटने की उम्मीद छोड़ निकलता हूँ,
ठण्ड में ठिठुरते, मशक्क्त से साँसे बटोर
देशवासियों की सुरक्षा में जीवन झोंक देता हूँ,
इनके जीवन की रक्षा में किसी का जीवन भी ले लेता हूँ
मैं सर उठा, सब कुछ कुरबानकर शहीद हो गया हूँ,
खुशनसीबी है कि कफ़न नसीब हुआ,
तिरंगा कफ़न है, इससे बेहद गौरवान्वित हूँ
अरे! रुको, अब न जाने ये क्या हो गया है ,
मुल्लों ने हरा रंग छीन लिया,
पंडों ने भगवा फाड़ अलग किया है,
इनसब से अपनी खातिर
सिर्फ सफ़ेद टुकड़ा बचा पाया हूँ।