लंकेश को रण में हरा प्रभु सिय लखन सह आ रहे
तब देख कर इस दृश्य को सब देवता यश गा रहे।
सुनकर तभी ऐसे वचन भूले भरत मन की व्यथा
ज्यों प्यास से व्याकुल किसी को मिल गयी हो अज सुधा।।
दौड़े भरत जैसे हुआ मन हर्ष का उदगार था
आके नगर सब गुरुजनों को दे दिया समाचार था।
फिर राज गृह भी गइ खबर माता सभी हर्षित हुईं
चौदह बरस के बाद अज आँखें हरष से भर गईं।।
फल फूल अरु तुलसी लिए तब हर नगर अरु हर गली,
गजगामिनी सी चाल से महिला सभी गाते चली।
जो जिस दशा में था उसी में उठ खड़ा होकर चला
हैं पूछते इक दूसरे से आ गए क्या प्रभु भला?।।
तब जानके प्रभु आगमन सरयू वहां निर्मल हुईं,
तीनो तरह की तब हवाएं मस्त हो बहने लगीं।
माँ, गुरु सहित सारे कुटुम्बी आय अगवानी करन,
दोनों अनुज सोचें अभी देंगे दरस प्रभु के चरन।।
ज्यों ही गगन के मार्ग से श्रीराम आते ही दिखे,
गाने लगीं सब नारियां अरु ढोल थे बजने लगे।
सागर समां मानो अवध, रघुनाथ पूनम चंद्र से,
हो ज्यों चला सागर तभी छूने चरण उन चंद्र के।।
श्रीराम का पंकज समां मुख देख करके मात सब
लें आंसुओं को रोकतीं मंगल समय को जान तब।
माता सभी लें थाल सोने की उतारें आरती,
मानो स्वयं श्रीराम का गुणगान करती भारती।।
अपने महल को प्रभु चले तब संग में ले जानकी,
चारों दिशा में गूँजता जय जय कृपा नीधान की।
मणि आदि से सज्जित हुए सोने-कलश थे द्वार पर,
लहरा रहीं थीं ध्वज पताका हर भवन के द्वार पर।।
अज दीप माला आदि से सारा महल था सज चुका
ज्यों राम के स्वागत में घर-घर चन्द्रमा हो अज रुका।
हर इक गली घृत के दियों से कर रही उन्माद थी
हर घर दिवाली कर रही ज्यों शंख द्वारा नाद थी।।