विषय: “बाढ़ की संभावनाएँ सामने हैं,
और नदियों के किनारे घर बने हैं "
अतिप्रश्न
सृष्टि समाप्त हो गई। यकायक उत्पन्न हुई प्रलय, सभ्यता के सारे प्रमाण समाप्त करने लगी। कल रात को सरकार ने मोबाईल गेम 'पब्जी' पर प्रतिबन्ध लगा दिया। मनु अपने कमरें में निश्चेतन मुख और सजल नयनों से अपने प्रियतमों के संसार का पतन देखता रहा,
"हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह
एक पुरुष, भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय प्रवाह"
पिछले कुछ वर्षों में कितनी लगन से निर्मित किया था उसने अपना यह संसार। अपना सर्वस्व समर्पित करके इस गेम के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों की सूची में उसने अपना नाम बनाया था। यह यात्रा सरल नहीं थी। प्रत्येक क्षेत्र की भाँति यहाँ भी सफल होने के लिये केवल परिश्रम काफ़ी नहीं था, आवश्यकता थी इसे अपना जीवन बना लेने की। और उसने यह किया। उसे विश्वास था कि जब यह रूढ़ीवादी समाज अब धीरे धीरे केवल पढ़ाई को सफलता का मापदंड मानने से ठुकराने लगा है, और विभिन्न खेलों और कलाओं के क्षेत्र में नये आयाम छू रही यूवा पीढ़ी को भी उतना ही सफल मानने लगा है जितना की वह एक डॉक्टर या इंजीनियर को मानता है तो अवश्य ही एक दिन मोबईल गेम में करियर को भी उतना ही सम्मान देगा। परिवर्तन की शुरुआत घर से होती है। पिछले महीने हुए आयोजन में इस खेल में पूरे भारत में प्रथम आकर लाखों का नगद ईनाम जीतकर उसने अपने घरवालों को भी अपनी बात सिद्ध कर दी थी कि क्षेत्र कोई भी हो, सच्ची लगन और श्रध्दा से किया गया कार्य सदैव सम्मानित होता है। बहुत खास था उसके लिये वह दिन।
परंतु आज का दिन बिलकुल विपरीत था। उस दिन बधाइयाँ देने वालों में से अधिकतर तो आज अपने घरों में हँस रहे थे। अच्छे मित्र हरि ने सुझाव दिया कि, " मनु अपनी सृष्टी का पुनर्निर्माण करो। और भी गेम हैं वहाँ सफलता प्राप्त करो। नहीं तो बुद्धि तीक्ष्ण है अच्छे कॉलेज में प्रवेश लेने का प्रयास करो। हताश मत बैठो!"
परंतु वह हताश नहीं था, उसे प्रश्नों ने घेर लिया था।
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राजा जनक की सभा में अश्वल, आर्तभाग, भुज्यु, उषस्त और कहोल आदी विद्वानों के प्रश्नों के उत्तर देकर ऋषी याज्ञवल्क्य सभी गायों को ले जाने लगे। उसी क्षण वकचन्वी गार्गी ने उन्हें रोका और प्रश्न किया,
" ऋषिवर यदि सभी वस्तुएँ जल में लीन होती हैं तो जल किसमें लीन होता है?"
याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया ,"हे देवी, जल वायु में लीन है।"
" तो वायु किसमें लीन है?"
" हे गार्गी, वायु अंतरिक्ष में लीन है। "
" तो अंतरिक्ष किसमें लीन है?"
" गंधर्वलोक में।"
" तो गंधर्वलोक किसमें लीन है?"
" आदित्यलोक में।"
" तो आदित्यलोक किसमें लीन है?"
" चन्द्रलोक में।"
"और चन्द्रलोक?"
" नक्षत्रलोक में।"
गार्गी पूछती गईं, नक्षत्रलोक देवलोक, देवलोक इन्द्रलोक, इन्द्रलोक प्रजापतिलोक , और अन्त में प्रजापतिलोक ब्रह्मलोक में लीन होता है यह कह कर याज्ञवक्ल्य चुप हो गये पर गार्गी ने पुन: प्रश्न किया,
" और ब्रह्मलोक, ब्रह्मलोक किसमें लीन होता है ऋषिवर?"
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मनु सोच रहा था,"यदि मैं दूसरा खेल खेलूं भी तो क्या? एक दिन तो वह खेल भी या तो इसी प्रकार रोक दिया जाएगा या लोग ही ऊबकर आगे बढ़ जाएंगे। तो क्या मैं पढ़ाई लिखाई करके अच्छा कॉलेज और अच्छी नौकरी पाने का प्रयास करूं?"
"पर नौकरी क्यों करनी है?"
"ताकि धन आए। "
"धन क्यों चाहिए?"
"ताकि जीवित रहने के संसाधन उपलब्ध हो सके।"
"जीवित रह कर क्या करूँगा?"
"नये किर्तिमान स्थापित करूँगा। मानव यही तो करता है। विशाल और जटिल सभ्यताएँ बनाता है। अपनी सृष्टि का निर्माण करता है।
" सृष्टि का क्या होगा?"
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"गार्गी, माति प्राक्षीर्मा ते मूर्धा व्यापप्त्त्"
याज्ञवक्ल्य ने गार्गी से कहा, " गार्गी अतिप्रश्न मत करो! अन्यथा तुम्हारा मस्तक गिर जाएगा। ब्रह्म के पश्चात् प्रश्न पूछोगी तो कोई लाभ नहीं होगा।"
गार्गी समझदार थीं बात को समझकर शान्त होकर यथास्थान विराजित हो गईं।
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मनु जो पूछ रहा था उसका उत्तर उसके सामने ही था,
" सृष्टि का अंत होगा।"
"फिर सर्जन का लाभ ही क्या है?"
"मनुष्य कैसा जीव है! इस विश्व में जिसका अन्तिम सत्य प्रलय ही है, वहाँ क्यों वह अपने इन महलों का निर्माण करने में जीवन नष्ट कर देता है। पूरा समय जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास करता है परंतु जीवन एक सीधा मार्ग नहीं एक चक्र है जिसमें वह घूमता ही रह जायेगा। हर क्षेत्र में सच्ची लगन और श्रद्धा से किया गया कार्य समान रूप से निष्फल, नश्वर, और निरर्थक होता है।"
"फिर क्यों सृष्टि का पुनर्निर्माण कर इस चक्र को चलता छोड़ दूँ?"
"नहीं मैं इस प्रलय और निर्माण के
चक्र को त्यागता हूँ। "
इतना कह मनु ने जल प्रपात में छलांग लगा दी और जल में लीन हो गया। और जल वायु में, और वायु अंतरिक्ष में, और अंतरिक्ष...