जाहिर करना पड़ेगा तुमको,
ये बेरुखी, ये नाराज़गी क्यों है,
जाहिर करना पड़ेगा तुमको।।
जिस के आने पर गुल से खिल जाते थे, उसके होने पे अशुफ्तगी क्यों है,
जाहिर करना पड़ेगा तुमको।।
ये वक़्त है बदल जाता है, मगर आता है वैसे ही,
ये दिन है ढल जाता है, मगर आता है वैसे ही,
चांद है फितरत है इसकी, घटना-बढ़ना,
ये मौसम है पिघल जाता है, मगर आता है वैसे ही।
मौसम की तरह तुम बदल गए, फसल की तरह में बर्बाद हो गया,
कि ये बेरुखी, ये नाराज़गी क्यों है,
जाहिर करना पड़ेगा तुमको।।
आज बर्बाद है तो कल आबाद भी होंगे,
आज नाशाद है तो कल शाद भी होंगे।
ये जंजीरे बहुत देर तक आतिश के सीने में महफूज रहे नहीं सकती,
आज असीरी में है तो कल आज़ाद भी होंगे।
ये आज़ाद है, तो फिर लूटी जिंदगी क्यों है,
जाहिर करना पड़ेगा तुमको।
ये बेरुखी, ये नाराज़गी क्यों है,
जाहिर करना पड़ेगा तुमको।।
चांद था समर पे पर बाहों में हमारे था,
रुख बनता था महेताब तुम्हारा, तुम्हे सजाता था हर सितारा।
आज दोनों के हाथो में नफरतों के ज़ाम है,
बात कल की है कि हर लकब था हमको प्यारा।
तेरी यादों के जो आखिरी थे निशान,
दिल तड़पता रहा, मैं मिटाता रहा।
खत लिखे थे जो तुमने कभी प्यार में,
उसको पढ़ता रहा और जलाता रहा।
जब से सुना है घर वालों ने तेरी जुदाई के बारे में,
ना जानें क्यों घर के पंखे उतारे जा रहे है।
कि अब तो जाहिर करना पड़ेगा तुमको,
ये बेरुखी, ये नाराज़गी क्यों है,
जाहिर करना पड़ेगा तुमको।।
ए-मौला क्या पानी पे लिखी थी मेरी तकदीर,
हर ख्वाब बह जाता है मेरे रंग भरने से पहले।
मैं लाश बन गया हूं
गैर क्यों ले जा रहे है अपने कंधो पर,
अरे हाॅं
मेरे अपने तो कब्र खोद रहे है।
शिकायत है मेरी, मुझसे करो,
हमदर्दी गैरो से क्यों रखो।
तेरी बेरुखी का जवाब, बेरुखी से नहीं उलफत से देंगे हम,
फिर भी ये नफरतों की आग दिल में लगी क्यों है,
जाहिर करना पड़ेगा तुमको,
ये बेरुखी, ये नाराज़गी क्यों है,
जाहिर करना पड़ेगा तुमको।।
तेरी मेहरबानियो को भूल तो जाऊ सबा, पर क्या करू,
ज़ख्म भर जाता है मगर दाग जाता नहीं।
जो हमारे पास आए बेइरादा, उसकी हमें कद्र कहां,
जिसकी हमें कद्र है अफजल वो हमारे पास आता नहीं।
मैने अपनी खुश्क आंखो से लहू छलका दिया,
जब समंदर कहे रहा था मुझको पानी चाहिए।
सूखे पत्तो की तरह बिखरता था मैं,
तुमने इकठ्ठा करके आग क्यों लगा दी,
जाहिर करना पड़ेगा तुमको,
ये बेरुखी, ये नाराज़गी क्यों है,
जाहिर करना पड़ेगा तुमको।।
अक्सर तेरा नाम लिखकर खरोच देता हूं,
मगर मिटा नहीं पाता,
कि अब तो जाहिर कर दे कि ये बेरुखी, ये नाराज़गी क्यों है,
मुझसे अब और जिया नहीं जाता,
मुझसे अब और जिया नहीं जाता...