“कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबीअ'त से उछालो यारो”
राजस्थान के पश्चिमी भाग में दुर्गापुर नाम का एक गांव है ।यह गांव हमारे देश के सबसे पिछड़े गावों में से एक है।ना बिजली की सही व्यवस्था ना पक्की सड़कें और ना ही मोबाइल नेटवर्क। पर यह सारी समस्याएं बौनी लगने लगती हैं जब हम अपना ध्यान यहाँ के जल स्तर पर केंद्रित करते हैं। पहले तो एक दो साल में एक आध बार बारिश हो जाया करती थी।लेकिन इस बार पूरे तीन साल गुजर चुके हैं और धरती पर पानी की एक बूँद तक नहीं पड़ी है।ऐसा भी नहीं है की गांव वालों ने अपनी तरफ से कुछ नहीं किया। इन्होंने इस तीन साल में गांव के अलग- अलग हिस्सों में 6 कुएँ खोद डालें।लेकिन बदले में इन्हें रेत और मिट्टी ही मिली पानी नसीब नहीं हुआ। ज्यादातर लोग अपनी जमीन छोड़कर शहरों के लिए पलायन कर चुके हैं और जो बचे हैं उनका भी हौसला टूटने लगा है।
इस गांव में दो नवयुवक हैं, मोहन और श्याम। मोहन को लगता है गांव के हालात बदलना अभी भी काफी मुमकिन है लेकिन श्याम बहुत पहले से ही गाँव छोड़ने के पक्ष में है। गांव से 20 किलोमीटर की दूरी से एक नहर गुजरती है। मोहन इसका पानी अपने गांव तक लाना चाहता है।उसने कई बार अपने इलाके के विधायक से बात की, हालाँकि विधायक को कोई असर नहीं पड़ा।आज भी मोहन उन्हीं से बात करने आया हुआ है। मोहन नाराजगी के साथ पूछता है कि इतने दिनों से उसकी बात नजरअंदाज क्यों की जा रही है।
इस पर विधायक जी झल्लाके कहते हैं -"20 काम रहता है यहाँ पर।हमें नहर खोदने के लिए आदमी नहीं मिल रहे हैं।"
मोहन बोलता है - "आदमी नहीं मिल रहे थे तो पहले बता देते।नहर तो खुद हमारे गांव के लोग ही खोद सकते हैं।"
विधायक --"ठीक है तो खोदो लेकिन दो हफ्ते में ही काम पूरा हो जाना चाहिए और इसके लिए पैसा भी नहीं दिया जायेगा। "
मोहन -"पैसा नहीं पानी चाहिए और दो हफ़्ते में काम हो गया तो पानी दे देंगे ना "
विधायक - "हाँ दे देंगे लेकिन अगर काम पूरा ना हो पाया तो फिर कभी मुँह उठाकर इधर नहीं आना।"
मोहन - "ठीक है। "
यह बोलकर मोहन गांव के लिए रवाना हो जाता है। गांव पहुंचते ही सबको इकट्ठा करता है और सारा किस्सा सुना देता है। श्याम निराशा भरे शब्दों में बोलता है - "यह तो नामुमकिन है। "
इस पर मोहन एक शेर कहता है - "कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबीअ'त से उछालो यारो"
इतना बोलकर वह फावड़ा उठाता है और अकेले काम करने निकल पड़ता है।
कुछ ही देर में श्याम व अन्य सभी लोग भी काम करने आ जाते हैं।नवयुवकों की मेहनत व लगन देखकर अन्य लोगों का मनोबल भी ऊँचा होता गया।सबने अपनी पूरी जान फूँक दी और नामुमकिन से लगने वाले इस काम को एक दिन पहले ही लगभग समाप्त कर दिया।नहर एक जगह से सड़क क्रॉस करती है तो बस वहाँ पुल बनाने का काम बचा है।
अगली दिन पौ फटते ही मोहन और श्याम दोनों विधायक जी से मिलने निकलते है।उनसे मिलकर वे बताते हैं कि कैसे उन्होंने सारा काम वक़्त से पहले ही कर लिया और केवल एक पुल बनाने की जरुरत है। पहले तो विधायक जी चौंक जाते हैं कि इन्होंने यह काम कर कैसे लिया, लेकिन अगले ही क्षण शांत स्वर में बोलते हैं -"हम आपके कार्य की प्रशंषा करते हैं , लेकिन बात यह है कि जिस सड़क पर आप पुल बनाने की बात कर रहे हैं, वह बहुत ही जर्जर है और हो सकता है अगर हम नीचे से मिट्टी हटाएँ तो सड़क ही धंस जाएँ।यानी पुल तो नहीं बन पायेगा और ना ही आपको पानी मिल पायेगा। "
श्याम गुस्से के साथ कहता है -"जब आपको पानी देना ही नहीं था तो इतनी मेहनत क्यों कराई। हम केस कर देंगे आप पर"
विधायक -"कर दो ना।लेकिन फिर केस तो हम भी कर सकते हैं कि आप लोगों ने नहर बनाने के नाम पर कई टन मिट्टी चुरा ली।"
रुआंसा चेहरा लिए श्याम और मोहन गांव लौटते हैं।श्याम सबको इकट्ठा करता है और बोलता है- "सब लोग शहर जाने कि तैयारियाँ करो। इस गांव का कुछ नहीं हो सकता। और हाँ, अब कोई पत्थर नहीं उछाला जायेगा, इससे आकाश में सुराख नहीं होता बल्कि पत्थर गिरकर हमारा ही सर फोड़ देता है।"
मोहन बिल्कुल शांत है मानो कोई सदमा सा लग गया है।लेकिन अगले ही दिन अखबार में कुछ ऐसा देखता है कि सीधे श्याम के पास दौड़ा आता है। खबर छपी है कि कल प्रदेश के मुख्यमन्त्री यहाँ के जिला मुख्यालय पर आ रहे हैं।अतः वह उसी सड़क से होकर गुजरेंगे जहाँ पुल बनाना है।श्याम कहता है- "कोई फायदा नहीं। पिछले साल भी तो मुख्यमन्त्री इसी सड़क से गुजर रहे थे, हमने सड़क पर धरना देने की कोशिश की।पर पुलिस वालों ने हमें भगा दिया और मुख्यमंत्री जी तो हमारी बात सुनाने के लिए गाड़ी से उतरे तक नहीं।"
मोहन मुस्कुरा कर कहता है "इस बार मैं धरना देने की बात नहीं कर रहा हूँ।"
अगले दिन की बात है।मुख्यमन्त्री जी अपने आवास से निकल रहे हैं।अपने पीए से पूछते हैं- "मीडिया वाले आ चुके हैं ना। 6 महीने में चुनाव है हमारा हर एक काम जनता को दिखना चाहिए।" पीए जवाब देता है- "हाँ, मीडिया,सुरक्षा-कर्मी सभी आ चुके हैं।" मुख्यमंत्री जी वहाँ से निकलते हैं और मंजिल तक पहुँचने वाले ही होते हैं कि अचानक गाड़ी रुक जाती हैं, क्योंकि आगे की सड़क तो जमीन में धंसी हुई है।पहले तो सभी डर जाते हैं कि कोई हमला तो नहीं होने वाला, लेकिन सामने देखते हैं तो दो लड़के एक बड़ा सा पोस्टर लिए खड़े हैं, जिस पर लिखा है- "पुल बनाने का प्रयाश करते हुए सड़क धंस गयी है।" पुलिस से पहले उन तक मीडिया पहुंच जाती है और बयान दर्ज होने लगते हैं।कुछ देर में बात मुख्यमंत्री जी तक भी पहुंचती है कि विपक्ष दल के विधायक ने इनसे 20 किलोमीटर लम्बी नहर खुदवाई, उसके बाद भी पानी देने से इंकार कर दिया और जर्जर सड़क होने के बावजूद इन्हें सड़क के नीचे से पुल बनाने के लिए भी विवश किया।हालाँकि मुख्यामंत्री जी को इन लड़कों से कोई खास संवेदना नहीं है पर चुनाव के लिए एक ठोस मुद्दा मिल चुका है।
गांव में पानी आया तो शहरों की सड़कों पर भटक रहे वे लोग भी लौट आये। पहले जो कुँए खोदे गए थे उन्हें भी पानी से भर दिया गया है ताकि कोई आपात स्थिति आये तो उसका सामना कर सकें।इसके साथ ही बिजली, परिवहन व अन्य क्षेत्रों में भी सराहनीय सुधार हुए हैं।शायद आकाश में सुराख़ हो गया है।
~ आदर्श चौधरी