जिंदगी है इनायत किसी और की
किसलिए हो इबादत किसी और की
चाँद को है मोहब्बत किसी और से
चाँदनी है इनायत किसी और की
जो मरूँगा तो फिर ये कफ़स टूटेगा
मौत क्या है? जमानत किसी और की
इस जमाने मे क्या है मोहब्बत भला?
कोई लत है, ये आदत किसी और की
मैं यहाँ जुर्म करने से पहले जरा
कर रहा था शिकायत किसी और की
खुशबुएं कर रही हैं हवा में सफर
ये ग़ज़ल है अमानत किसी और की