मैं हार चुका हूँ
इस दुनिया से
इस दुनियादारी के ईश्वर से मनते माँगते-माँगते
थक चुका हूँ भीतर और बाहर से
उसने इस संकट की घडी़ में भी
मेरा साथ देने से साफ़ इनकार कर दिया
मुझे इस बात का दुःख नहीं हैं!
और नहीं,
उससे अब कुछ ओर माँगना चाहता हूँ
मनते माँगते-माँगते मैं भी थक गया हूँ
मुझे सिर्फ़
अब अपने घर तक पहुँचने की चाहत है
अब भी उसके पत्थर से दिल में रहम हैं
तो मैं भी अवश्य घर पहुँचा दिया जाऊँगा
एक दिन वो भी लौटेगा
बाहर और भीतर से हताश होकर मेरे दर पर
बदवास की तरह नंगे पैदल चलकर आयेगा
मेरे चौखट पर मेरे दर्दों पर मरहम की पट्टी लगायेगा
मुझे नहीं चाहिये
बाद में की गयी मरहम पट्टी
एक दिन तुम भी
थक कर आओंगे मेरे ईश्वर
मेरी मनते तुम्हीं के साथ श्मशान जाएँगी।