पात्र परिचय
आर्यन त्रिपाठी : १६ वर्ष का छात्र, चंचल व्यस्त, गोरा, आँखो के आगे गोल चश्मा, लम्बे बाल। अपनी धुन में मस्त रहने वाला।
सुलोचना त्रिपाठी : आर्यन की माँ। साधारण पारम्परिक महिला हैं। ५३ वर्ष आयु।
रामू : नौकर, मज़ाकिया स्वाभाव, टांग खीचता, सांवला, माथे पर मस्सा, ३० वर्ष आयु।
रविन्द्र त्रिपाठी : आर्यन के पिता, व्यस्त, दादी का चेहरा कुछ हद तक याद। ४६ वर्ष आयु।
गजेंद्र प्रकाश त्रिपाठी : आर्यन के दादा, नई तकनीक नहीं पसंद, पुराने खयाल वाले व्यक्ति हैं। स्वर्गवासी पत्नी से अत्यंत प्रेम। ७५ वर्ष आयु। छोटा कद। पीठ थोड़ी झुकी, लाठी के सहारे। थोड़े से चिड़चिड़े। पुरानी बातें करने के शौकीन।
अंजलि त्रिपाठी : आर्यन की बड़ी बहन, आयु १९ वर्ष, अपनी जिंदगी में मस्त, दयालु।
श्रेयस : आर्यन का मित्र,
चंद्रप्रकाश : स्केच आर्टिस्ट, छोटा कद, दुबला पतला, आयु ३१ वर्ष।
दृश्य 1
[शनिवार शाम का समय है। गजेंद्र जी के कमरे का सामान बिखरा पड़ा है। गजेंद्र जी परेशान हो कर एक किताब के पन्ने पलट रहे हैं। तभी आर्यन उनके कमरे में आता है।]
आर्यन : क्या हुआ दादाजी? आप परेशान से दिख रहे हैं। कुछ मदद चाहिए आपको?
गजेंद्र (किताब को एक ओर रखते हैं और चश्मा उतारते हुए बोलते हैं) : अरे आर्यन बेटा! तुम कब आए? चलो अब आ ही गए हो तो कागज़ सरियाने में मदद कर दो।
आर्यन : अरे दादाजी, मैं तो बाहर जा रहा था ज़रा। अभी तो नहीं, पर आकर ज़रूर मदद कर दूंगा। खैर, आप ये तो बताइए कि आप कर क्या रहे हैं?
गजेंद्र : अरे बेटा! आज सुबह से मैं अपने पुराने कागजात देख रहा था। ये देखो, चार-पांच दस्तों में बंद ये मेरी सारी पुरानी फाइलें हैं। और ये देखो, ये मेरे दफ्तर की हाज़री का रजिस्टर है, शायद से १९८२ का है(गजेंद्र उसे खोलकर देखने लगते हैं) अरे ये देखो, ये मेरी नौकरी का कॉल लेटर, ये देखो तुम्हारी बुआ की शादी में कर्ज लिया था, उसके कागज़ हैं….. ये देखो रेडियो का बिल…. पर न जाने क्यों कुछ अधूरा सा लग रहा है।
आर्यन : अब आप इतने कागज़ रखोगे तो लगेगा ही कि कुछ न कुछ गायब है। मुझे देखिए, मेरे सारे ज़रूरी दस्तावेज़ इस एक फ़ोन में है। बस एक बटन दबाने की देर है।
(इतना बोलते हुए आर्यन बाहर चला जाता है और गजेंद्र फिर अपने कागज़ों में कुछ ढूंढने लग जाते हैं)
गजेंद्र (बुदबुदाते हुए) : ये कल का छोकरा हमें पढ़ा रहा है, ये नहीं के आकर हमारी मदद करे, उल्टा हमें ज्ञान देकर आगे बढ़ गया।
(इतने में रामू (नौकर) चाय लेकर कमरे में आता है और चाय देने आगे बढ़ता ही है कि तभी, उसके पैर के नीचे आकर एक कागज़ फट जाता है)
गजेंद्र (गुस्से से आग बबूला होते हुए) : नालायक नासपीटे! एक काम भी ढंग से नहीं होता।
रामू : क्या बाऊजी, क्यों इतना गुस्सा रहे? अब आप चारों तरफ इतने कागज़ फैलाएंगे तो एक आद तो फट ही जाएगा। और अगर फट भी गया, तो था तो पुराना कागज़ ही। कौन सी जान बसी थी उसमें? पानी पीजिए, वरना बी.पी. हाई हो जाएगा।
गजेंद्र (गुस्से में) : अरे दुष्ट, मज़ाक उड़ाता है मेरा। काम से निकलवा दूंगा।
रामू : अरे बाबूजी, हमको देने वाला राम आपको भी देने वाला राम। इतना क्या घमंड इस बुढ़ापे में। राम का जाप करिए और खुश रहिए।
(शोर सुनकर सुलोचना भागी भागी आ जाती है)
सुलोचना : क्या हुआ बाऊजी? सब ठीक तो है ना?
गजेंद्र : अच्छा हुआ बहु तुम आ गई। ये देखो तुम्हारे नौकर को, काम तो कुछ करता नहीं है, ऊपर से ज़बान लड़ाता है, काम का न काज का दुश्मन अनाज का।
सुलोचना : बाऊजी आप यहाँ बैठिए और आराम से बताइए कि आखिर हुआ क्या?
रामू : अरे कुछ नहीं मालकिन, एक कागज़ क्या फट गया, बाऊजी तो आग बबूला हो गए।
सुलोचना : तू चुप कर, जा जाकर रसोई संभाल।
(रामू कमरे से भुनभुनाते हुए चला जाता है)
सुलोचना : अब बताइए बाऊजी, क्या हुआ?
गजेंद्र : अच्छा हुआ बहु तुमने उसे भगा दिया फालतू की बहस कर रहा था। और वो आज मैं अपने पुराने कागज़ात देख रहा था उनमें से ही उसने कोई फाड़ दिया देखना तो ज़रा कौन सा कागज़ है?
सुलोचना : एक मिनट बाऊजी। (कागज़ उठा कर गौर से पढ़ती है) ये तो कुछ रसीद लग रही ….. सवा तीन तौला….। बाऊजी, ये तो कुछ गहनों की रसीद लग रही।
गजेंद्र : ये तो वही गहने हैं जो तुम्हारी सास ने अपनी बेटी को ब्याह में देने के लिए पहले से बनवा रखे थे। सरला कभी कभी इन्हे पहन कर और खुद को शीशे में देखकर मुस्कुराती थी। (तभी गजेंद्र चुप हो जाते हैं और फिर से रजिस्टर के पन्ने पलटने लगते हैं)
सुलोचना : क्या खोज रहे हैं बाऊजी?
गजेंद्र : बहु... वो तस्वीर।
सुलोचना : कौन सी तस्वीर बाऊजी?
गजेंद्र : वही जो तुम्हारी सास की एकमात्र तस्वीर है। इसी रजिस्टर में रखी रहती थी...
(गजेंद्र चुप हो जाते है)
सुलोचना : बाऊजी आप कुछ कहना चाह रहे हैं ? बोल दीजिए।
गजेंद्र : बहु मुझे सरला की शक्ल याद नहीं आ रही।
(दोनो कुछ समय के लिए शांत रहते है और फिर सुलोचना उठते हुए बोलती है)
सुलोचना (दबे स्वर में) : ध्यान से देखिए बाऊजी, यहीं किसी किताब में दबी होगी। मैं थोड़ा रसोई देखने जा रही हूँ।
(सुलोचना कमरे से निकल जाती है)
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दृश्य 2
[रविवार का दिन है। रविन्द्र त्रिपाठी (आर्यन के पिता) बरामदे के सोफे पर बैठे अखबार पढ़ रहे हैं, आर्यन वहीं बैठा फोन चला रहा है। रामू कूलर के आगे स्टूल पर बैठा चाय पी रहा है।
गजेंद्र अपने कमरे से निकलकर बाहर आते हैं तभी सुलोचना भी रसोई से निकलकर आती है।]
गजेंद्र : रविन्द्र! बेटा तुम्हें पता है अम्मा की तस्वीर कहाँ रखी है?
रविन्द्र (धीरे स्वर में) : कौन सी तस्वीर बाऊजी?
गजेंद्र : वही तस्वीर, जो घर बदलने के बाद से गायब है, उसका कुछ पता चला क्या?
रविन्द्र : अच्छा वो! उसे तो मैंने भी काफी समय से नहीं देखा। पता नहीं कहाँ होगी। (रविन्द्र त्रिपाठी फिर अखबार पढ़ने में व्यस्त हो गए)
गजेंद्र : वही तो पूछ रहा हूँ तुमसे। मालूम है, कहाँ है?
(रविन्द्र ने कोई जवाब नहीं दिया)
रामू : पड़ी होगी यहीं-कहीं? अपने समान को फैलाये तो रहते हैं आप इधर-उधर।
सुलोचना : रामू तुम रसोई में जाओ और काम खत्म करो…
(सुलोचना अपनी बात पूरी करती उससे पहले ही )
रामू : मालकिन मैं वही करने जा रहा था वो तो बाऊजी पूछ रहे थे इसलिए कह रहा हूँ आप ही ने तो अभी कमरा सही किया है, नहीं तो हमेशा ऐसे ही तो पड़ा रहता है इनका कमरा। गुम गयी होगी कहीं तस्वीर…
(तभी रामू का फ़ोन बजता है और वो अपनी बात पूरी करें बगैर फ़ोन पर बात करने लगता है)
सुलोचना : रसोई में बहुत काम पड़ा है रामू, उसे जाकर खत्म करो।
(रामू बात अनसुनी कर देता है और अपने फ़ोन में व्यस्त रहता है)
(थोड़ी देर शांति रहती है….
दादा जी की छड़ी का सहारा छूटने लगता है और अब वो अपनी छड़ी सोफे के बगल से टिका कर सोफे पर बैठ जाते हैं।)
गजेंद्र : आर्यन बेटा तुमने देखी है क्या दादी की तस्वीर?
(आर्यन के कानों में हेडफोन है)
आर्यन : कुछ कह रहे है थे क्या आप मुझसे।
गजेंद्र : तस्वीर देखी है क्या तुमने दादी की?
आर्यन : नहीं, मैंने नहीं देखी।
गजेंद्र : पता नहीं कहाँ गुम गई, तुम्हारी दादी की आखिरी तस्वीर थी।
आर्यन (अपने पिता से) : वैसे आज मदर्स डे है पापा आप अपनी माँ की फोटो नहीं लगाएंगे क्या स्टेटस पर।
(पिता की तरफ से कोई जवाब नहीं आता)
आर्यन : अच्छा छोड़िए मैं ही लगा लूँगा। आखिर अपनी माँ और दादी माँ दोनो की फोटो लगाने में कोई बुराई थोड़ी है।
आर्यन : अच्छा दादा जी आपने कब देखी थी आखिरी बार दादी की फोटो?
गजेंद्र : अच्छे से तो मुझे भी याद नहीं पर जब से इस घर में आया हूँ तब से तो नहीं देखी।
आर्यन : अच्छा पर पुराने घर में तो नहीं होगी वहाँ से तो सारा सामान आ गया था कुछ भी नहीं रह गया था। वहाँ पर कुछ भी नहीं बचा था, और बचा भी होगा तो अब नहीं मिलेगा वहाँ पर दूसरे लोग रहने लगे है अब तो………...
गजेंद्र : हद है बेशर्मी की! सीधा जवाब दे रहे ये लोग कि नहीं मिलेगी तस्वीर। एक अखबार में घुसे पड़े हैं, दुसरे सोफ़े पर लदे हैं थोथा जैसे। घर बेच दिया, अपनी माँ की तस्वीर की परवाह नहीं है, हमें भी वृद्धाश्रम ही छोड़ आते। कम से कम कोई उम्मीद तो ना रखता इन नालायकों से। ऐसा है बेटा एहसान न करो हमें पालने का।
सुलोचना : बाऊजी नाराज़ मत होइये, खाना लग गया है खा लीजिये। मैं ढुँढ़वाती हूँ तस्वीर आपकी।
गजेंद्र : अब तो बहू तस्वीर मिलने के बाद ही खाऊंगा मैं।
(गजेंद्र कमरे से बाहर चले जाते हैं। रविन्द्र पेपर से सर निकाल कर देखते हैं, फिर वापस व्यस्त हो जाते हैं। आर्यन फ़ोन चलाता रहता है। सुलोचना आकर उसके सर पर बेलन मारती हैं और पर्दा गिर जाता है)
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