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दृश्य 3
[दोपहर का समय। सुलोचना परेशान हैं, अपने कमरे में सर पकड़े बैठी हैं, और कुछ बड़बड़ा रही हैं]
सुलोचना : आर्यन के पापा भी कुछ ध्यान नहीं देते हैं। घर में सभी का खयाल मुझे ही रखना है। बाऊजी ने खाना नहीं खाया है और सुबह से फोटो के पीछे नाराज होकर बैठे हैं।
(अंजलि फोन पर किसी से बात करते हुए माँ को परेशान देखती है)
अंजलि : (फ़ोन पर बात करते और हंसते हुए) हाँ यार, आज कॉलेज में भी क्या मस्त तमाशा हुआ। रुको मैं बाद में बात करती हूँ …(फ़ोन किनारे रख कर)
क्या हुआ माँ बहुत परेशान लग रही हो?
सुलोचना : आजा बेटी तुझे फुरसत मिल गई! सुबह से घर में हंगामा हो रखा है।
अंजलि : अब मैं घर संभालने लगी तो कॉलेज का काम कौन देखेगा? खैर वो सब छोड़िए ये बताइए हुआ क्या?
सुलोचना : क्या बताऊं बेटा, दादा जी के पास वो दादी जी की एक ही तस्वीर थी, वो गुम गई। दादा जी सुबह से उसी को लेकर परेशान हैं, खाना भी नहीं खाया अभी तक। खैर उनकी परेशानी जायज़ भी है, लेकिन उनके चक्कर में मैं बहुत परेशान हूँ ।
अंजलि : ओह बस एक तस्वीर की बात है, मिल जाएगी वो, आप परेशान मत होइए। पहले आप चल कर खाना खा लो।
सुलोचना : कैसे न परेशान हूँ, तुम्हारे पापा और भाई को तो कुछ परवाह ही नहीं है। सुबह से दादा जी उनसे पूछ रहे तस्वीर को लेकर लेकिन तुम्हारे पापा सुध ही नहीं लेते घर के काम की।
(तभी रामू कमरे में दनदनाता हुआ आता है)
रामू : मालकिन गेट पर चंदा मांगने वाले आए है।
सुलोचना : जा तू भी नौकरी छोड़कर उन्हीं के साथ चंदा मांगने लग जा। सुबह से तेरी वजह से घर में हंगामा हो रखा है।
रामू : अरे मालकिन! मैं नौकरी छोड़ दिया तो क्या बर्तन आप माँजोगी? वैसी भी मैं चंदा तो अपने लिए भी मांगने आया था। कुछ पैसे मेरे लिए भी दे दीजिए, साइकिल पंक्चर हो गई आपके दर्जी के चक्कर काटने में।
सुलोचना(अंजलि से) : अरे जाओ बेटी इस निकम्मे को कुछ पैसे दे दो।
(अंजलि और नौकर कमरे से निकल जाते हैं, तभी रविन्द्र कमरे में प्रवेश करते हैं)
रविन्द्र : राशन आ गया है जाओ गिन लो सामान।
सुलोचना : हाँ गिनती हूँ, फ़ोन छोड़ गए थे आप। दस लोग का कॉल आ चुका। पहले इनको देखिये फिर अम्माजी की तस्वीर का कुछ कीजिये.... बाऊजी उसको लेकर परेशान हैं इतना, इतने बूढ़े हो गए हैं वो और आप को उनकी परवाह ही नहीं है।
रविन्द्र : अब फोटो नहीं मिल रही है तो मैं क्या करूँ। बाऊजी को संभाल कर रखनी चाहिए थी।
सुलोचना : कैसी बात करते हैं आप भी। इस उम्र में हर चीज़ का ध्यान रखना कठिन होता है। और उनकी लापरवाही की बात आप तो कीजिए मत। मैंने कब से….
रविन्द्र : क्यों न करें? दिन भर मुझे ताना देते रहते हैं वो और मैं कुछ न करूँ
सुलोचना : हाँ मत कीजिए, जो चीज़ करने कहती हूँ वो तो …
रविन्द्र : क्या करने को कहती हो। अभी राशन मंगवाने कहा था... ले आया; परसो परदे धुलवाने भेज दी थी। नौकर है घर में पर छुट्टी के दिन भी आराम नहीं है! कुछ न कुछ…
सुलोचना : मैंने इतने समय पहले कहा था नये घर में शिफ्ट होने पर बड़ी करवा के टंगवानी है फोटो। पर आप ही ध्यान नहीं रखते।
रविन्द्र : दिन भर मुझे और इतने काम होते हैं! भूल गया। हर चीज़ की ज़िम्मेदारी मेरी ही है क्या? गधे भर का लड़का हो गया है तुम्हारा। दिन भर आवारागर्दी करता …
सुलोचना : अब उसको मत कोसिये। वैसे भी झगड़ के फ़ायदा नहीं है कुछ उपाय सोचिये कि माहौल ठीक हो।
रविन्द्र : हाँ मुझे ही सोचना पड़ेगा तुम तो ढुँढवा पाई नहीं। खैर परेशान होने वाली बात नहीं है मैं एक स्केच आर्टिस्ट को जानता हूँ वो बना देगा कुछ न कुछ बाऊजी से पूछ कर।
सुलोचना : अरे बात तो यही कि वो उनकी सूरत भूल गये हैं तभी वो इतने परेशान हैं।
रविन्द्र : ये क्या बात होती है कि चेहरा भूल गये। अरे तुम बहुत चिंता करती हो याद आ जाएगी थोड़ी देर में।
सुलोचना : आपको तो याद होगी ना कुछ कुछ तस्वीर अपनी माँ की। मुझे भी थोड़ी बहुत याद है तस्वीर देखती थी बाऊजी के पास।
रविन्द्र : अच्छा चलो देखते हैं मुझसे कुछ हो सकेगा तो देखूंगा।
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दृश्य 4
[घर के ठीक बाहर का दृश्य। बाउंड्री वाल पर आर्यन बैठा हुआ है। उसका दोस्त (श्रेयस) आकर कूद कर बैठ जाता है।]
श्रेयस : अबे चल मैच खेलने, यहाँ क्या पड़ा है!
आर्यन : यार मम्मी डपट दी हैं! दादी की फ़ोटो ढूंढने का काम मिला है। समझ नहीं आ रहा कहाँ से ढूँढू।
श्रेयस : कमरे में ढूँढ दादा के। अलमारी में पड़ी होगी और कहाँ से लाओगे।
आर्यन : हाँ जैसे ये तो मैंने किया ही नहीं था। एकदम नयी बात बताये हो।
श्रेयस : भड़क काहे रहे? सोचते हैं कुछ। ये बताओ तुम्हारी दादी की और कोई फोटो नहीं है क्या?
आर्यन : नहीं! वही तो दिक्कत है सारी।
श्रेयस : लगता है तुम्हारी दादी फोटोजेनिक नहीं रही होंगी। पूरी उम्र में एक फोटो है केवल। मैं तो दिन में कम से कम तीन-चार अपलोड करता हूँ इंस्टाग्राम पे।
आर्यन : हाँ, और साल भर बाद डिलीट करके साफ़ भी करते हो इस रायते को।
श्रेयस : अरे तब मेरा निब्बा पीरियड चल रहा था यार। अब उन पुरानी फोटोज़ को देख के दिमाग खराब होता है तो उनको हटा देना अच्छा। दुनिया वाले बाद में देखेंगे तो ये क्यों दिखे कि श्रेयस बाइक से लटक कर हीरो बनने वाले काम करता था।
आर्यन (हँसता है) : तुम भी अलग कैरेक्टर हो! खैर दादा दादी के समय इंस्टाग्राम फेसबुक तो था नहीं फोटो खींचवाकर भी क्या करते।
श्रेयस : यही जड़ है समस्या की। बताओ तेरी दादी की फ़ोटो को आज तक एक ही लाइक मिला है बस तेरे दादा का। ( दोनों मुस्कुराने लगते हैं)
आर्यन : यार वैसे दुनिया से लाइक लेके क्या ही लाभ? अपने जानने चाहने वाले देख लें, बहुत है।
श्रेयस : अरे भाई दुनिया के लिये ही तो है फोटो। घरवाले तो वैसे भी पूरा दिन तेरी मनहूस शकल देखते ही हैं। उनको फोटो दिखा के क्या करेगा। एक काम करो अपने दादाजी से कहो जल्दी आ जाएं इंस्टा पे। वरना कल को उनके लिए भी दिक्कत हो जाएगी। दुनिया भूल जाएगी उनको।
आर्यन : तो मरने के बाद क्या ही फरक पड़ता है कौन देखने आ रहा। वैसे भी मुझे तो दादा की शकल याद रहेगी। मुझे दिक्कत नहीं होगी उनकी फ़ोटो खो गयी तो।
श्रेयस : तो दादी की काहे भूल गये?
आर्यन : यार दादी को कभी देखे ही कहाँ हैं! बस एक दो बार तस्वीर ही देखी थी। उनकी शकल तो मुझे नहीं लगता मेरे पापा को भी ठीक से याद है। दादाजी भूल गये हैं दादी की शकल उसी के एग्ज़िस्टेंशिअल क्राइसिस में पूरे घर को डाल दिए हैं।
श्रेयस : अबे तो जब घर में किसी को याद ही नहीं है। तो मेरी दादी की दिखा दे जा। इन्हें क्या ही पता चलेगा?
आर्यन : रहने दो महान आदमी। तुम घर से निकलवा दोगे हमको। भक!
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दृश्य 5
[दोपहर का समय है। गजेंद्र अपने कमरे में सो रहे हैं। रविन्द्र स्केच आर्टिस्ट को घर बुलाते हैं। रविन्द्र और सुलोचना सोफे पर बैठे स्केच आर्टिस्ट का इंतजार कर रहे हैं। आर्यन भी वहीं बैठा फोन चला रहा है। अंजलि भी वहीं बैठी कोई किताब पढ़ रही है।]
(डोर बेल बजती है)
आर्यन : मैं देखता हूँ कौन है….।
(कोई छोटे कद का दुबला पतला नौजवान आदमी पीठ पर काले रंग का बस्ता लटकाए खड़ा है।)
आर्यन : पापा देखिए कोई सेल्समैन लग रहा है।
(रविन्द्र उठकर देखने जाते हैं)
रविन्द्र : आ गए चंद्रप्रकाश। बहुत देर कर दी आने में।
चंद्रप्रकाश : हाँ भाई साहब रास्ते में आपके पास वाले हलवाई की दुकान दिख गई तो सोचा थोड़ा मिष्ठान पान कर लें। वैसे बहुत बढ़िया हलवाई मालूम पड़ता है।
आर्यन : चलो अच्छा है खर्चा बच गया हमारा।
रविन्द्र (आर्यन की ओर गुस्से से देखते हैं फिर मुस्कुरा कर चंद्रप्रकाश से) : आ गए हो चलो अच्छा है अब काम शुरू किया जाए।
चंद्रप्रकाश : हाँ हाँ भाई साहब बिल्कुल, लेकिन ये तो बताए तस्वीर किसकी बनवानी है।
अंजलि : ओह पापा! क्या ये स्केच आर्टिस्ट है सही पहचाना क्या मैंने?
रविन्द्र : हाँ बेटी सही पहचाना ये स्केच आर्टिस्ट हैं। इन्हे तुम्हारी दादी की फोटो बनवाने के लिए बुलाया है।
आर्यन : ये स्केच आर्टिस्ट हैं हुलिए से तो स्केच आर्टिस्ट नहीं लगते।
(रविन्द्र आर्यन की ओर घूरकर देखते हैं इतने में... )
चंद्रप्रकाश : अरे भाई साहब रहने दीजिए आज कल के बच्चे हैं।
आर्यन : आजकल के बच्चे हैं तो क्या हुआ बेवकूफ थोड़ी हैं, स्मार्ट हैं।
सुलोचना : बड़े स्मार्ट हैं। चलो अंदर चलो तुम्हारी स्मार्टनेस निकालते हैं।
अंजलि : हाँ मम्मी आजकल इसकी ज़बान बहुत टपर टपर चलने लगी है।
आर्यन : अरे चुप करो मम्मी की चापलूसी करने की कोई जरूरत नहीं है।
(सुलोचना दोनो को अंदर लेकर जाती हैं। कमरे में रविन्द्र और चंद्रप्रकाश रह जाते हैं। दोनों में वार्तालाप होने लगता है। दोनों के हाथों के तेज़ इशारों से दृश्य चलता है)
चंद्रप्रकाश : हाँ अच्छा ऐसी नाक थी और आँखें? (फिर थोड़ी वार्ता चलती है …)
चंद्रप्रकाश : ये किताब देखिये इससे पहचानिए ठोड़ी कितनी मोटी थी….
(थोड़ी देर पश्चात)
चंद्रप्रकाश : लीजिए भाईसाहब आपकी माताजी की तस्वीर बनकर तैयार है।
(चंद्रप्रकाश स्केच को रविन्द्र की तरफ मोड़ता है )
रविन्द्र : ये क्या बना दिए चंद्रप्रकाश तुम! माना की मेरी माँ की शक्ल मुझे अच्छे से याद नहीं लेकिन ये तो मेरी अम्मा नहीं ही हैं।
(थोड़ी देर शांति रहती है फिर) चंद्रप्रकाश : भाई साहब अब अपनी जैसी बताई वैसी ही बनाई है मैंने।
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